Sunday, December 21, 2014

धर्मान्तरण : समस्या और निदान

     लोभ देकर, छल करके एवं बलपूर्वक धर्मांतरण  (धर्म परिवर्तन/ धर्म परावर्तन) भारतवर्ष में विधि-विरुद्ध है। स्वतंत्र भारत में धर्मांतरण से उपजा विवाद सदैव ही वैमनस्यता को उत्पन्न करने वाला, समाज और देश के लिये घातक तथा विकास के लिये बाधक रहा है।
     बहुधा प्रभावित व्यक्ति, धर्मांतरण क्रियाओं में संलग्न व्यक्तियों या संगठनों द्वारा धर्मांतरण के पश्चात् आरोप-प्रत्यारोप करते देखा जाना आम बात होने लगी है।
     भारतीय क़ानून वर्तमान में धर्मान्तरण को प्रतिबंधित नहीं करता है, अपितु उसके लिये कुछ मापदंड तथा दशायें निर्धारित करता है। इन्हीं मापदंडो तथा दशाओं को जब कसौटी पर परखने की बारी आती है, समस्यायें और विरोधाभास जन्म लेने लगता है, परस्पर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो जाता है और विवाद सामने आने लगते हैं।
     समस्या का स्थायी निदान निम्न प्रकार से संभव दिखायी देता है :
* केंद्रीय क़ानून बनाकर धर्मांतरण को निषिद्ध कर दिया जाये। (इसकी संभावना क्षीण दिखायी देती है।)
 अथवा 
* धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को जिला जज सरीखे जनपद स्तर के न्यायिक अधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित करबाकर परीक्षण किया जाये कि वह देश के क़ानून के तहत अपने वर्तमान धर्म को परिवर्तित करके अमुक धर्म में धर्मांतरित होना चाहता है, अतः उसे अनुमति प्रदान की जाये। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया पारदर्शी होने के साथ-साथ एक अत्यंत छोटी समयावधि के भीतर सम्पन्न होनी चाहिये। एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन का एक अनिवार्य समयावधि अंतराल भी निर्धारित किया जा सकता है।
21.12.2014 (Sunday)

Wednesday, December 17, 2014

पिशाच बने आतंकबादी !


     16 दिसम्बर, 2014  वैश्विक इतिहास में वह काला दिन बन गया है जब नर-पिशाच "तहरीके-ए-तालिवान पाकिस्तान" ने पेशावर पाकिस्तान के एक स्कूल में इंसानियत को कुचल डाला और बेगुनाह, मासूम, हँसते-खेलते फूल जैसे 132 बच्चों एवं 10 स्कूल-स्टाफ कर्मियों का बेरहमी से कत्लेआम कर डाला। पूरी दुनिया में मानवता का दिल कराह उठा है।  इंसानियत हतप्रभ और शब्द-विहीन होकर रह गयी है। दहशतगर्दों के इस कायरतापूर्ण, बर्बर और वहशियाना नीचकर्म की निंदा करने के लिये शब्दकोष में मौज़ूद शब्द नाकाफ़ी हैं। 
     आतंकबाद के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष में पूरी दुनिया को ईमानदारी से संगठित होना पड़ेगा। पाकिस्तान आख़िर भारत के ही जिस्म का एक हिस्सा है, आज हर भारतवासी का ग़म में डूबा होना स्वाभाविक है। पाकिस्तानी हुक़ूमत और पाकिस्तानी सेना जितनी जल्दी हो, ख़ुदा के वास्ते, ये समझ जाये कि अपनी छत के नीचे किसी भी तरीक़े की दहशतगर्दी को पालने-पोषने का अंजाम कितना भयावाह और दर्दनाक होता है, तभी तो आज भी 'हाफ़िज़ सईद' जैसा सिरफिरा और खुदगर्ज आतंकवादी इस दर्दनाक, असहनीय हादसे का कुसूरवार भारत को बताने का दुस्साहस कर रहा है, और भारत पर हमला करने की धमकी दे रहा है। 
17.12.2014

Friday, December 5, 2014

संसदीय प्राथमिकता

जम्मू-कश्मीर राज्य में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी आक्रमण में भारतीय सेना और पुलिस के वीर जवानों ने आज अपने प्राणों का बलिदान दिया है। पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुके पाकिस्तान के इस दोगलेपन और कायरतापूर्ण हरकतों से सम्पूर्ण देशवासी ग़ुस्से में हैं और स्तब्ध हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य के भारी मतदान से पाकिस्तान बौखला गया है।
विपक्ष केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति के द्वारा माफ़ी माँग लिये जाने के बाबजूद उनके दिये वक्तव्य को ढाल बनाकर कई दिनों से संसद की कार्यवाही ठप किये हुये है। प्रधानमंत्री जी भी इस मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में वक्तव्य दे चुके हैं।
यह अपेक्षाकृत गौड़ मुद्दा है।
आज़ के आतंकी आक्रमण के मद्देनज़र संसद में चर्चा होना बेहद आवश्यक है। विपक्ष के माननीय नेतागणों से यह विनम्र निवेदन है कि संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलवाकर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी आक्रमण के बारे में गंभीर चिंतन एवं मंत्रणा करें। आज देश की यही माँग है। 
05.12.2014

Sunday, November 30, 2014

वाह रे काली कमाई का चस्का !

     पिछले कुछ वर्षों से यूपी की सत्ता पर बारी-बारी से क़ाबिज़ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजबादी पार्टी (सपा) में गज़ब की "राजनैतिक दुश्मनी" आये-दिन जनता को दिखायी पड़ती है, लेकिन 'नोएडा अथॉरिटी', 'ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी' और 'यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी' एक साथ तीनों के सत्तासीन कर दिये गये पूर्व चीफ इंजीनियर, करप्शन किंग, अरबों-खरबों के मालिक (अभी तक के छापों के मुताबिक), यादव सिंह (नौकरी की शुरुआत जूनियर इंजीनियर के रूप में, एक दलित अधिकारी) ने काली कमाई का ऐसा अचूक मन्त्र दिया कि सपा बसपा दोनों ने यादव सिंह को तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ चढ़ाने में अभूतपूर्व सामंजस्य दिखाया, और परस्पर योगदान दिया। वाह रे काली कमाई का चस्का ! 
     क्या देश का क़ानून देश के अंदर बैठे गिरोह के सारे चोरों को सज़ा देने में इस बार क़ामयाब हो पायेगा ?
     क्या इन "बड़े-बड़ों" के द्वारा लूटा गया काला-धन देश के ख़ज़ाने में वापस आ पायेगा ?
     या फ़िर इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर हमेशा की तरह.……… ?
30.11.2014 (Sunday)
     

Monday, November 24, 2014

बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होये.......

     मेधा (Intellect) योग्यता और क्षमता का दर्पण होती है, और वही उन्नति के परिणाम देने में सक्षम होती है। लेकिन जब जाति, मज़हब, परिवारबाद ही पैमाने बना दिये जाएं, तो फिर विकास और जन-कल्याण की अपेक्षायें करना या तो मुंगेरी लाल के हसीन सपनें देखने जैसा होता है या फिर सोची-समझी रणनीति के तहत दिखाबा (Posturing) करना होता है।
     आजकल समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख माननीय श्री मुलायम सिंह यादव उ० प्र० में अपने ही पुत्र अखिलेश यादव की सरकार पर आये-दिन तंज कसते दिखायी देते हैं, नाक़ामयाबियाँ गिनाते रहते हैं, विकास का ककहरा सिखाते दिखायी देते हैं। लोकसभा के 2014 के चुनाव-परिणामों के बाद दबी ज़ुबान से ही सही, लेकिन बहुधा "मोदी अलर्ट" भी जारी करते रहते हैं। आगामी 2017 के उ० प्र० विधान-सभा चुनाव परिणामों की हक़ीक़त की आहट उन्हें डराती रहती है।
     मान्यवर, जब 'परिवारबाद', 'जातिवाद' और 'संप्रदायबाद' के पैमानों पर "ओहदे" सजाये जाते हों, तब भ्रष्टाचारी, ग़रीबी, गुंडागर्दी के ही फल आम-जनता को मज़बूरन खाने पड़ते हैं। यथार्थ में यदि सकारात्मक 'फल' की चाहत होती, तो 'कर्म' भी उसी के अनुकूल किया गया होता।
फिर...... 
*उ० प्र० पुलिस में भर्ती और तैनाती जाति को देखकर नहीं होतीं;
*मंत्री, सांसद, विधायक आदि परिवार, जाति और मज़हब के आधार पर तय नहीं होते;
*गुंडई को सुविधानुसार फलने-फूलने न दिया जाता और उस पर कभी-कभार की होने वाली कार्यवाही भी जाति  और धर्म देखकर नहीं होती;
*लोहिया जी के 'समाजबाद' को फिर हक़ीक़त में संजीदगी से जिया जाता, आये-दिन उसका जनाज़ा न निकाला जाता, आदि-आदि।
 

Tuesday, October 21, 2014

"मिलावट" मुक्त भारत आख़िर कब ?

     आज दिनाँक 21.10.2014 मंगलवार 17:15 बजे 'जी न्यूज़ टीवी चैनल' पर दीपावली पर्व के मद्देनज़र खाद्य-पदार्थों, मिठाईयों आदि में मिलावट पर एक सालाना रबायती चर्चा हो रही थी। एंकर के अतिरिक्त चार 'पैनलिस्ट' और भी मौज़ूद थे। वर्तमान सरकार के पक्ष को रखने वाले प्रवक्ता महोदय 2011 में आये नये क़ानून के अन्तर्गत लाइसेंस रजिस्ट्रेशन, पैकेजिंग, लोक जन-जागरण, सेल्फ रेगुलेशन, लैब टेस्टिंग आदि आदि नये और अधिक प्रभावी सरकारी कदमों के बारे में बता रहे थे। मिलावट के मामलों के लिये स्पेशल कोर्ट्स स्थापना की भी बात बतायी गयी। पिछली कांग्रेस लेड यूपीए सरकार की ओर से प्रवक्ता महोदय ने अपनी अकर्मण्यताओं को स्वीकारा भी, और अधिक कड़े क़ानून बनाने में ताली बजाने की भी गारंटी दी। 
     आख़िर इस प्रकार के सालाना रस्मी कार्यक्रमों में कोई भी पक्ष ज़मीनी हक़ीक़त को दो-चार वाक्यों में ही क्यों नहीं बयान करता कि मिलावट के विरुद्ध बनाये गये यह क़ानून और सरकारी क़दम भारत में कभी भी न तो प्रभावी ढंग से कामयाव हुये हैं और न होंगे, जब तक कि :
 *मिलावटी वस्तुओं की प्रभावी छापेमारी;
 *पारदर्शी और ईमानदार 'सैंपलिंग', 'टेस्टिंग';
 *जाति-बिरादरी आधारित भेदभाव रहित, ईमानदारी से एफआईआर दर्जगी नहीं होगी; और
 *अदालती कार्यवाही में रिश्वतखोरी, लेटलतीफी और भ्रष्टाचार अपनी जड़े जमाये रहेगा। 
     केवल क़ानून बना देने मात्र से बुराइयाँ कभी नहीं मिटेंगी, जब तक कि सख़्ती और ईमानदारी से क़ानून का क्रियान्यवयन और उसका अनुश्रवण (Monitoring of the execution of law) नहीं होगा।

Tuesday, September 30, 2014

अभूतपूर्व विलाप !








देश के ग़ददार, भ्रष्टाचारी, लुटेरे ज़रा सी भी आफ़त आन पड़ने पर अपनी-अपनी लूट खसोट को महफूज़ रखने के लिये मिल जुलकर कैसा रोबा-पिटाई और विलाप करते हैं, इसका ताज़ातरीन उदाहरण तमिलनाडू है। मंत्रियों से लेकर उनके "सहयोगी" तक कैसा अभूतपूर्व विलाप कर रहे हैं। यूँ तो ऐसे उदाहरणों की देश में कमी नहीं है। यूपी तो शायद सबसे आगे निकलेगा, ज़रा भ्रष्टाचारियों की गर्दन तो क़ानून की गिरफ़्त में आने दीजिये। 

Monday, September 22, 2014

विनम्र आग्रह माननीय उद्धव जी ठाकरे से !

     हठ और हालात में से राजनीति में हालात को चुनना सदैव श्रेयस्कर माना गया है, अन्यथा भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंक विकास स्थापना की बात दूर की कौड़ी लगने लगती है। हाल के लोकसभा चुनाव में बिहार का उदाहारण हम सबके सामने है। 
     परम आदरणीय बालासाहब जी ठाकरे की अब स्मृतियाँ ही शेष हैं, न कि उनका सजीव सशरीर मार्गदर्शन, और इधर मोदी जी जैसे विराट व्यक्तित्व का प्रमाणिक अभ्युदय !
     आप जैसे श्रेष्ठ बुद्धिजन के लिये वास्तविकता की अनुभूति कदाचित सरल होना चाहिये। भाजपा-शिवसेना के 25 वर्ष पुराने पावन गठबंधन को बचा लीजिये। 
*** निवेदक 
अनेश कुमार अग्रवाल
22.09.2014

Monday, September 15, 2014

जलप्रलय की विभीषिकायें !

  
गत वर्ष (2013) उत्तराखण्ड और इस वर्ष (2014) जम्मू काश्मीर राज्य में भयंकर बाढ़ और वर्षा से जो भारी तवाही हुयी है, उसमें मौसम के मिज़ाज में आ रहे बदलाव की आहट तो सुनायी पड़ ही रही है, लेकिन राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की आपराधिक संलिप्तता, अकर्मण्यता और कर्तव्यहीनता भी तवाही के मुख्य कारणों में से हैं।
कुछ  मुख्य  कारण :
 1. शहरों एवं आवादी वाले इलाकों के "ड्रेनेज सिस्टम"  को निर्बाध (Clear) नहीं रखा गया है, फलस्वरूप अतिवृष्टि से उपजे पानी की निकासी नहीं हो पायी।
 2. नदियों, झीलों के किनारों का अतिक्रमण करके उनको संकुचित करके बेतरतीब, अन्धाधुंद, पर्यावरणविरुद्ध, ग़ैरक़ानूनी निर्माण होने दिया गया।
 3. पर्याप्त वृक्षारोपण न किया जाना एवं बृक्षों की अन्धाधुंद कटाई सरकारी संलिप्तता के कारण निर्बाध जारी है।
 4. जल संचयन की व्यवस्थाओं की अनदेखी, पोखरों और तालाबों का विलुप्तीकरण समस्याओं की भयावहता को बढ़ा रहा है।
समस्या के निदान के कुछ पहलू  :
 1. समस्याओं के जो कारण वर्णित किये गये हैं, जब तक क़ानून तोड़ने वालों और शिथिलताओं के जिम्मेदारों को चिन्हित कर उनको कठोर दण्ड नहीं दिया जायेगा, देश से इस प्रकार की समस्याओं का स्थाई उपचार सम्भव नहीं हो पायेगा।
 2. संभावित खतरों एवं समस्याओं का पूर्वानुमान करके, बेहतर आपातकाल प्रबंधन के साथ, समाधान परक नवीन परियोजनाओं का निर्माण कर एवं उनका शत-प्रतिशत क्रियान्वयन सुनिश्चित कर फिर उनका सतत अनुवरण एवं अनुरक्षण करना अनिवार्य  होगा।  


        

Sunday, July 27, 2014

एक पटकनी और.…!

     उत्तर-प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 2014 चुनाव में एक भी मुस्लिम सांसद लोकसभा में नहीं पहुँचा। मुसलमानों का हमेशा वोट ठगने की जुगत में, अपने आपको मुसलमानों का सबसे बड़ा 'मसीहा' होने का दिखावा करने बाली "समाजबादी पार्टी" से उम्मीद लगायी जा रही थी, कि 'मैनपुरी लोकसभा उप-चुनाव' में वह किसी मुस्लिम प्रत्याशी को उतारेगी। यहाँ एक बार फिर, "सपा सुप्रीमो" के परिवारबादी मोह ने आखिरकार लोहिया जी के समाजबाद को पटकनी दे मारी, और "सपा सुप्रीमो" के परिवार के दर्जनभर विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद आदि-आदि बन जाने के बाद भी उनके वंशबाद की भूख शांत नहीं हुई, और अब उनके प्रपौत्र (भतीजे के पुत्र) तेज प्रताप यादव मैनपुरी से लोकसभा उप-चुनाव प्रत्याशी के रूप में अवतरित कर दिये गये !
     मुसलमानों का सबसे बड़ा 'मसीहा' होने का झूठा दिखावा करने के साथ ही उनको हक़ो से वंचित भी रखने के अलावा, एक यक्ष प्रश्न यहाँ और भी उभरता है, कि श्री मुलायम सिंह यादव के परिवार के अतिरिक्त किसी "अन्य यादव परिवार" में क्या ऐसा कोई भी सक्षम, योग्य, मनीषी, जन-सेवक व्यक्ति नहीं है जो मैनपुरी से लोकसभा उम्मीदवार बनने के 'लायक' होता ?
     यूँ  तो समस्त उत्तर-प्रदेश निवासी, लेकिन विशेषकर मुस्लिम और यादव भाई-बहन, वर्षों से चले आ रहे झूठे समाजबाद (Pseudo Secularism) का चोला उढ़ाये "सपा सुप्रीमो" के परिवारबाद के चरम पर गहनता से विचार करें, और फिर फ़ैसला लें, कि आख़िर कब तक सामाजिक, जातिगत, मज़हबी भेदभाव की फसलें उगा-उगाकर अपने परिवार-जनों का "कैरियर" बनाया जाता रहेगा, और दौलत का साम्राज्य खड़ा किया जाता रहेगा ? कुःशासन की बानगी के तौर पर, नारी सुरक्षा को तार-तार कर देने के अलावा, तीन वर्षों के 'सपाई शासनकाल' में हुये लगभग 150 दंगों की तपिश तो उत्तर-प्रदेश की निर्दोष जनता ने ही झेली है, और झेल रही है, "सपा सुप्रीमो" का परिवार तो 'सरकारी सुरक्षा' में महफ़ूज़ रहकर 'माल' समेटने में लगा है। रही बात, चहुँ ओर विश्व में बह रही इक्कीसवीं-सदी के विकास की बयार की, तो कोसों दूर है अपना अभागा 'उत्तर-प्रदेश', इन जैसे 'शासकों' के चंगुल में।


Wednesday, July 16, 2014

पत्रकारिता की भी मर्यादायें हैं !


     साक्षात्कार लेने या देने के नाम पर एक पत्रकार या स्तम्भकार बन्धु की सीमायें वहाँ तक कदापि नहीं बढ़ जातीं, कि वह राष्ट्र-नीति एवं विदेश नीति का स्वयं अपने अनुसार निर्धारण एवं व्याख्या करने लगे और यहाँ तक कि अपने विदेश-प्रवास में उसको प्रचारित-प्रसारित करने लग जाये। वरिष्ठ भारतीय पत्रकार/ स्तम्भकार डॉ वेद प्रताप वैदिक जैसे किसी भी भारतीय पत्रकार या स्तम्भकार बंधु को यह बात शीघ्रतातिशीघ्र भली-भाँति समझ लेना राष्ट्रहित में होगा।
     मर्यादाओं का उल्लंघन भारतीय क़ानून के कड़े प्रावधानों की कसौटी पर कसा जाना चाहिये।  

Tuesday, July 15, 2014

कश्मीर परिपेक्ष्य में डॉ वैदिक


     हाल की एक ग़ैर सरकारी निजी पाकिस्तान यात्रा के दौरान वरिष्ठ भारतीय पत्रकार डॉ वेद प्रताप वैदिक जी ने गत 29 जून, 2014 को पाकिस्तानी "डॉन न्यूज़ चैनल" को दिये साक्षात्कार में कश्मीर परिपेक्ष्य में जो अपने विशुद्ध निजी विचार व्यक्त किये थे, उससे कश्मीर पर या वहाँ के लोगों की तथाकथित आज़ादी के बारे में विभिन्न व्याख्यायें या भ्रान्तियाँ अवतरित हो सकती हैं, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सम्पूर्ण अविभाजित कश्मीर का विलय भारत में अंतिम रूप से किया जा चुका था। सम्पूर्ण जम्मू एवं कश्मीर का भारत का अभिन्न अंग होने का सत्य उतना ही अटल है, जितना कि सूर्य का पूरब से उदय होकर पश्चिम में अस्त होना। 
     भारतवर्ष का इतिहास साक्षी है कि कश्मीर समस्या के जनक पंडित जवाहर लाल नेहरू थे, जो तत्समय सरदार बल्लभभाई पटेल की सलाह की भी अनदेखी करके, न जाने अपने किस निजी स्वार्थ की पूर्ति हेतु, बिना ज़रुरत, कश्मीर मुद्दा संयुक्त राष्ट्र संघ में घसीट ले गये थे ? तत्समय पाकिस्तानी कबीलों का कश्मीर के छोटे से भाग पर किया गया अतिक्रमण तो समाप्ति के बिंदु पर था।
     वर्तमान में पाकिस्तान ने कश्मीर के कुछ हिस्से पर जो अवैध रूप से क़ब्ज़ा कर रखा है, वो पूर्णतया अनधिकृत है, और उसको वापस पाने के लिये भारत सदैव दृढ़ एवं कृत संकल्पित है।
     श्रद्धेय डॉ वैदिक जी ही नहीं अपितु प्रत्येक भारतवासी को कश्मीर पर भारत की राष्ट्रीय नीति से इतर अपनी निजी राय व्यक्त करने से परहेज़ करना कदाचित अधिक श्रेयष्कर होगा।

कांग्रेस की कपटपूर्ण चालें

     लोकसभा आम चुनाव 2014  से कुछ समय पूर्व जम्मू एवं कश्मीर के अलगावबादी नेता यासीन मलिक ने पाकिस्तान जाकर जब भारत के कट्टर दुश्मन और पूरी दुनिया में दहशतगर्दी की ज़मीन पुख्ता करने वाले दुर्दांत आतंकी, प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात-उद-दाबा प्रमुख हाफ़िज़ सईद के साथ मंच साझा किया था और उसके साथ हड़ताल पर बैठा था, तब सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी 'मुस्लिम तुष्टीकरण' के चलते यासीन मलिक की उक्त घोर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर कार्यवाही करना तो दूर टिप्पणी करने तक से बचती रही थी, क्योंकि उस वक़्त कांग्रेस पार्टी की नज़र राष्ट्रहित न होकर मुस्लिम वोटों को हासिल करने पर लगी हुई थी। अब जब भारत के सच्चे राष्ट्रभक्त, निर्भीक, मनीषि, वरिष्ठ पत्रकार डॉ वेद प्रताप वैदिक बतौर पत्रकार अपनी एक ग़ैर राजनीतिक निजी पाकिस्तान यात्रा के दौरान पाकिस्तान की सरपरस्ती में फल-फूल रहे, पकिस्तानी माँद में महफ़ूज़ बैठे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी हाफ़िज़ सईद से दिनाँक 02/07/2014 को मुलाक़ात करके उसके भारत विरोधी मंसूबों और कलुषित कपटपूर्ण चालों को उससे जानने का प्रयास करते हैं, और जुटायी जानकारी भारत लौटकर देश के साथ साझा करते हैं, तो यही कांग्रेस पार्टी डॉ वैदिक की उक्त मुलाक़ात को अपने दोहरे चरित्र के चलते ग़ैरबाज़िब राजनैतिक रंग देने की साज़िश में संसद के दोनों सदनों में हो-हल्ला करके संसदीय कार्य निष्पादन को ठप्प करने का प्रयास करती है, जो पूर्णतया निन्दनीय है।
     पूर्णतया अपनी ज़मीन खो चुकी, भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी को यह याद रखना चाहिये कि राष्ट्रहितों की बलि देकर, केवल अपनी स्वार्थ-सिद्धि में और मुस्लिम वोटों के लालच में मुस्लिम तुष्टिकरण करते रहना राष्ट्र-हानि के साथ-साथ भारत के सच्चे राष्ट्रभक्त मुस्लिमों की राष्ट्र-निष्ठा का अपमान करना भी है।

Monday, July 14, 2014

देशभक्त, निर्भीक, मनीषि पत्रकार बंधु आपको साधुबाद !


     भारत के सबसे बड़े दुश्मन, आतंकी हाफिज़ सईद से पाकिस्तान में आतंकी की माँद में एक अनियोजित, निजी मुलाक़ात के क्रम में सच्चे देशभक्त, मनीषि, निर्भीक, वरिष्ठ पत्रकार डॉ0 वेद प्रताप वैदिक जी उस आतंकी की मंशा और मंसूबों को देश के समक्ष उजागर करवाने में कामयाब हुये हैं। उनको अनेकोंएक बधाई एवं साधुबाद !
     पूर्व में भी भारतवर्ष के अनेक निर्भीक, मनीषि पत्रकार बंधु कट्टर अपराधियों वीरप्पन, फूलनदेवी, निर्भय डकैत आदि जैसों के गढ़ में जाकर उनका साक्षात्कार करके उनकी मंशाओं को देश के समक्ष उजागर करते रहे हैं, जिससे अपराधियों को क़ानून के दरवाज़े तक लाने में अंततः सफलता हासिल हुई है।

Sunday, July 6, 2014

कुछ इण्टरमीडिएट बोर्डों की संदेहास्पद कार्यप्रणाली !

          गत पाँच वर्षों (2009 से 2014) में CBSE बोर्ड के इण्टरमीडिएट छात्र-छात्राओं पर अंको की रहस्यमयी बरसात हुई है! इन पाँच वर्षों में CBSE बोर्ड में छात्र संख्या बृद्धि केवल 64% हुई, जबकि 95% + अंक पाने वालों की बृद्धि 780% हुई है। इन पाँच वर्षों में देश के अन्य माध्यमिक शिक्षा बोर्डों जैसे यूपी बोर्ड, ISC बोर्ड आदि में CBSE बोर्ड सरीखा बेमेल तथ्य (Mis-match) नहीं पाया गया है।
          ऐसी रहस्यमयी वेमेल परिस्थितियों में अंडर-ग्रेजुएट एडमिशन्स में सुव्यवस्थितिकरण (Normalization) या समभाव संख्या-प्रणाली परिमाण (Scaling Process) प्रक्रिया बिशुद्ध बेमानी है।
          यूनिवर्सिटीज तथा डिग्री कॉलेजेज में अंडर-ग्रेजुएट एडमिशन्स समस्त बोर्डों के सामूहिक विद्यार्थियों के इण्टरमीडिएट में प्राप्तांकों के आधार पर "कट-ऑफ" सूची प्रक्रिया न अपनाकर या तो "प्रवेश-परीक्षा" के आधार पर हों, या प्रत्येक बोर्ड की सीटें अलग-अलग आरक्षित की जाएं, जिससे कतिपय बोर्डों की नम्बर लुटाने की साज़िश-पूर्ण अंधेरगर्दी में अन्य इण्टरमीडिएट बोर्डों के बच्चों में न तो निराशा का संचार हो और न ही उनका जीवन बर्बाद हो।
         

Wednesday, June 11, 2014

"बुराई" का उद्गम दोषी, नाकि मात्र उपयोगकर्ता !

            "बुराई" के पेड़ की जड़ को ध्वस्त करने से बुराई समाप्त होती है। इसके पेड़ की टहनियों, पत्तों, फूलों और फलों को नष्ट करते रहने से बुराई का पेड़ फिर से उगता रहेगा। "बुराई" के जन्मदाता पर आघात करने से बुराई का निदान संभव हो सकता है। "बुराई" के उपयोगकर्ता (end-user) को ही दण्डित करते रहने से "बुराई" के उदय को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि "बुराई" के वृक्ष के उदय को 'रिश्वत', 'सिफारिश' और 'ऊँचे ओहदों की ठनक' रुपी खाद-पानी से सींचा जाता है, और कवायद होती है  इस पर उगे पत्तों और फूलों को नष्ट करने की। उदहारणस्वरुप :
(1)  'पॉलिथीन' की थैली के उत्पादन बिंदु को कड़ाई से निषिद्ध करना चाहिये, नाकि मात्र उपयोग बिंदु को।
(2)  शराब, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू आदि के उत्पादन बिंदुओं को प्रभावी ढंग से हतोत्साहित करना पड़ेगा, उपभोगकर्ताओं हेतु इनके उपभोग से उत्पन्न हानियों के केवल जन-जागरण अभियानों मात्र से यह बुराईयाँ कदापि नहीं मिटेंगी।
(3)  अवैध इमारतों के उदय एवं निर्माण बिन्दुओं को कड़ाई से रोकना पड़ेगा, इनके खरीदारों और उपयोगकर्ताओं को दण्डित करना 'अन्याय' होगा, और वह भी 'अवैध' इमारत के बनने और उपयोग करने के 20-25 वर्षों के बाद। "कैंपा-कोला" सोसाइटी, मुंबई के निवासियों पर होने बाला 'अन्याय' इस प्रकार का ताज़ा दुःखद उदाहारण है।
(4)   'समानता के सिद्धांत' की अनदेखी अत्याचार को जन्म देती है। 'आदर्श सोसाइटी' मुंबई की 'अनियमितताओं' का उपचार क्या 'कैंपाकोला' सोसाइटी, मुंबई की तर्ज़ पर किया गया है ?      

Wednesday, June 4, 2014

सपा नेताओं का मानसिक दिवालियापन !

 दिनाँक 04.06.2014, दिल्ली - "बिका हुआ है मीडिया, रेप हर जगह.…"-----राम गोपाल यादव, सांसद एवं महासचिव, समाजबादी पार्टी (सपा सुप्रीमो के भाई)

दिनाँक 03.06.2014, लखनऊ, (बदायूँ, यूपी, में नाबालिग दो बच्चियों से गैंगरेप कर हत्या के बाद उनके शवों को पेड़ से लटकाने के जघन्य अपराध के बाद) - "मैं क्यूँ बदायूँ जाऊँ ? डीजीपी को जाँच के लिये भेजा है। राजस्थान और बेंगलुरू में भी बड़ी घटनायें हो रही हैं। यूपी की घटनाओं को बढ़ाकर दिखाया जा रहा है।" -----अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री, यूपी (सपा सुप्रीमो के पुत्र)

दिनाँक 10.04.2014, मुरादाबाद, चुनावी जनसभा, (मुंबई शक्तिमिल गैंगरेप और हत्याकांड में दोषियों को फाँसी की सज़ा मिलने पर)  -  "लड़कों से गलती हो जाती है.… तो क्या फाँसी दे देंगे ? …. हमारी सरकार आयी, तो कानून बदल देंगे। झूठी शिकायत करने बालों को सज़ा देंगे।" ---मुलायम सिंह यादव, सांसद (सपा सुप्रीमो)

     वाह रे, सपा सुप्रीमो श्री मुलायम सिंह यादव जी और आपका लगभग दर्जनभर सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, निकाय प्रमुख आदि आदि से 'लैस' राजनैतिक कुनवा !
          आप लोगों की मानवीय संवेदनायें और विचार शून्यता अपनी निम्न पराकाष्ठा पर पहुँच गयी प्रतीत होती हैं। अच्छा न कर पाने पर सत्ता की मदहोशी में क्या अच्छा बोलना भी आप लोग भूल चुके हैं ? किसी के विरुद्ध गलत रिपोर्ट लिखाने पर सज़ा का प्रावधान पहले से ही क़ानून में है, लगता है सपा नेताओं को शायद इसकी जानकारी नहीं है। माननीय मुख्यमंत्री जी, किन्ही दूसरी जगहों पर अधिक अपराध होने से क्या आप यूपी में होने वाले अपराधों को जायज़ ठहराना चाहते हैं? "Two wrongs never make a right"। ग़लत बयानबाज़ी अपराधियों का मनोबल बढाती है, परिणामतः अपराध बढ़ते हैं। सरकार इक़बाल से चलती है, और यूपी की वर्तमान सपा सरकार का इक़बाल कहीं नज़र नहीं आता। देखिये आपकी अकर्मण्यता और जले पर नमक छिड़कने सरीखी आप लोगों की बयानबाज़ी, देशवासियों को ही नहीं अपितु देश को भी कितना नुकसान पहुँचा रही है।

     WTTCII (World Travel Tourism Council, India Initiative) ने पर्यटन मंत्रालय, केंद्र सरकार को भेजी हाल की रिपोर्ट में कहा है कि "महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों से भारत की छवि को धक्का पहुँच रहा है।.…नतीज़तन भारत का पर्यटन उद्योग भी प्रभावित होगा।.…"

Tuesday, June 3, 2014

माननीय श्री अखिलेश यादव जी, मुख्यमंत्री यूपी, से एक अपील

        यूपी में "समाजबादी पार्टी" की सरकार के काबिज़ हो जाने के बाद से ही पुलिस, पीएसी, प्रशासन एवं अन्य महत्वपूर्ण सरकारी पदों का मोटे तौर पर खुला सुयोग्यता विहीन (Devoid of Merit) "यादवीकरण" करने से दो ख़ास नुक़सान हुये हैं :
(1)  'यादव' उपनामधारी अपने आपको क़ानून से ऊपर समझने लगे हैं। परिणामस्वरूप, यूपी में तहस-नहस होता सरकारी ताना-बाना। 
(2)  अन्य यादव परिवारों के सुयोग्य, अत्यंत प्रतिभाशाली, सक्षम, शांतिप्रिय और न्यायप्रिय व्यक्तियों की सुयोग्यता, सम्मान और शान में धब्बा लग रहा है।
     क्या कारण है कि हाल के बदायूँ जैसे घिनौने कांड में आरोपी पुलिस बालों के अलावा अन्य आरोपी भी अधिकांश "यादव" हैं ? 
     अतः माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी से अब यह अपेक्षा और माँग करना शायद उचित ही है कि यूपी में सुरसा के मुँह की तरह फैल चुकी जटिल समस्याओं के उपचार में भी पहला क़दम यही होगा कि जाति और धर्म से परे "सक्षम" और "अक्षम" के बीच भेद किया जाये, और तब विभिन्न पदों पर "तैनाती" की जाये और इसके बाद ही अनेकोंएक विकासोन्मुख कार्य किये जाने शेष होंगे।
     यहाँ उल्लेख करना शायद ठीक ही होगा कि सत्ता संभालने का कर्तव्य और धर्म 'केवल और केवल' जनसेवा होना चाहिये, न कि किसी जाति विशेष, धर्म विशेष या अपने परिवारजनों का "कैरियर" बनाने या अकूत दौलतमंद बन जाने का कोई 'प्लेटफॉर्म'।

Monday, May 19, 2014

चुनावी हार पर आत्मचिंतन के वजाय धमकी !

     लोकसभा आम चुनाव 2014 में अपेक्षित परिणाम न मिलने पर राजनैतिक पार्टियाँ आत्ममंथन या आत्मचिंतन करने के वजाय दुर्भाग्य से धमकी भरा परमंथन करने पर जुटी हैं, और कोशिश में हैं कि हार का ठीकरा कैसे भी दूसरों के सर फोड़ा जाये।
     एक खबर के अनुसार बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने एक 'प्रेस-कॉन्फ्रेंस' में धमकी भरे लहज़े में कहा है कि :
     "मुसलमान अपने फ़ैसले पर पछताएँगे।"
     "…दलित अब भी हमारी पार्टी से जुड़े हुये हैं, लेकिन मुसलमान बहकावे में आ गये। मुसलमान हमेशा ग़लत क़दम उठाते हैं, और पछताते हैं…।"  
     सुश्री मायावती, मुस्लिम और दलित भाई-बहनों को क्या अपना ज़रख़रीद ग़ुलाम समझती हैं? ताज़ कॉरिडोर, स्मारक, मूर्ति, स्वास्थ्य विभाग (NRHM), यूपी चीनी मिलों के विक्रय, आदि आदि में अरबों-खरबों के वह चाहे कितने भी घपले-घोटाले करती चली जायें, सांसद विधायकी की "टिकट विक्री" करती रहें, आय से अधिक संपत्ति इकठ्ठा कर लें, उनके मन्तव्य में उनका "बंधुआ वोट बैंक" चुपचाप उनको वोट देकर सत्तासीन करता रहे, और वह स्पष्टतया सामन्तबादी शैली में अपने सगे छोटे भाई की करोड़ों-अरबों की दर्जनों कम्पनियों के माध्यम से अपना 'बेनामी' साम्राज्य स्थापित करती रहें, क्या ऐसे ही होगा दलित कल्याण? क्या इसी तरह मुस्लिम भाई-बहनों को देश की विकास-धारा में उनका हक़ मिल सकेगा?
     अरे ! आपके पास जाति आधारित वैमनस्यता और धर्म के आधार पर बँटवारे के सिवाय आम जनमानस के लिये क्या कभी कोई विकास का एजेंडा रहा है? हाँ, ख़ुद का अरबों-खरबों का विकास आपने ज़रूर कर लिया, बेचारा दलित, मुस्लिम समाज़ एवं अन्य ग़रीब तबका तो वहीं का वहीं रहा। इसलिये 2014 के लोकसभा चुनावों में जनता ने देश की कुछ और भ्रष्ट क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ आपकी पार्टी का भी वज़ूद ही ख़त्म कर दिया, फिर भी आप जैसे लोग गंभीर चिंतन के वज़ाय कभी दलितों को, कभी मुस्लिमों को, कभी किसी और को कुसूरवार ठहराने पर आमादा हैं।
     सुश्री मायावती जी, वैसे भारत का मुस्लिम समाज़ इतना नासमझ नहीं है, जितना आप समझ रहीं हैं। मुस्लिमों का निरादर करने का आपको क्या हक़ है? दरअसल, अब आप जैसों की राजनैतिक दुकानें बंद होने की कगार पर हैं, जहाँ पर केवल मज़हव और जाति की कड़ुवाहट बिकती हो। अब आप लोगों को जाति एवं धर्म से परे सर्वजन-विकास, रोज़गार सृजन, मँहगाई नियंत्रण, भ्रष्टाचार मुक्ति, अपराध मुक्ति, त्वरित विधिक न्यायिक व्यवस्था, महिला सुरक्षा, बेहतर स्वास्थ सुविधाओं का सामान अपनी राजनैतिक दुकानों में सजाना पड़ेगा।  
     मुस्लिम भाई-बहनों को भी किन्हीं अन्य भारतवासियों की तरह तरक़्क़ी और विकास चाहिये, अमन-चैन की ज़िंदगी चाहिये, सरकार चाहे किसी की भी हो। अब इस विचारधारा पर चिंतन होना चाहिये।

Sunday, May 11, 2014

बनारस में चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन की ज्यादती !

     बनारस में मोदी जी की रैलियों को पहले इज़ाज़त नहीं, उद्देश्य बिफल कर देने के उपरांत बाद में इज़ाज़त। भाजपा कार्यालय में ग़ैरक़ानूनी छापा मारकर प्रचार सामग्री जब्त करना, फ़िर लौटा देने की बात करना। आख़िर यह भाजपा के साथ चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन की ज्यादती एवं पक्षपात नहीं तो और क्या है ?

Friday, May 9, 2014

अंतिम चुनावी हथकंडे !

     यदि "गाँधी" शब्द श्रीमान राहुल और श्रीमती प्रियँका के नामों से हटा दिया जाये, तो ढ़ूँढ़ने पर भी भारतवर्ष में उनका कोई राजनैतिक वज़ूद नहीं मिलेगा। अब ऐसे लोग और उनकी कांग्रेस पार्टी श्री नरेन्द्र मोदी जैसे कर्मयोगी, विकास पुरुष, परिणामदायी राजनेता पर जाति का कार्ड खेलने का यदि आरोप लगायें, तो यह कांग्रेस पार्टी और उनके लोगों की चुनावों मे निश्चित हार से उपजी हताशा के सिवाए कुछ भी नहीं है। 2014 के आम चुनावों के नौवें एवम अन्तिम चरण के दौर में पहुँचते-पहुँचते कांग्रेस के पास कहने और प्रदर्शित करने के लिये अब  बचा ही क्या है ?
     ऐसे में श्रीमान राहुल और श्रीमती प्रियँका जब जाति का हथकंडा आज़माने पर आमादा हो ही गये हैं, तो लगे हाथ वह क्या देश को यह बताने का कष्ट करेंगे कि वे किस जाति से आते हैं ? कितना अच्छा होता यदि वह मुद्दोँ पर राजनीतिक वहस करते।

Saturday, May 3, 2014

तैयार रहिये "डी एन ए टेस्ट" के लिये !


     समाजबादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के महाराष्ट्र राज्य के प्रमुख ज़नाब अबु आसिम आज़मी ने यूपी के संत कबीर नगर जिले के खलीलाबाद क़स्बे में 30 अप्रैल 2014 को एक चुनावी जन-सभा को सम्बोधित करते हुये कहा कि :
     "जो मुस्लिम समाजबादी पार्टी (सपा) को वोट नहीं देगा, उसका "डी एन ए टेस्ट" कराना चाहिये।"
     सच्चे मुसलमान की पहचान कलिमा पढ़नें (Ashhadu Alla Ilaha Illa Allah Wa Ashhadu Anna Muhammad Rasulu Allah), इस्लाम मानने, पवित्र क़ुरान शरीफ़ के मुताबिक ज़िन्दगी जीने के बजाय अब इस बात से तय होगी कि सपा सुप्रीमों श्री मुलायम सिंह यादव के पूरे कुनबे में कुछ बचे-खुचों को भी एम०पी०, एम०एल०ए० और मंत्री बनबाने के लिये, उनकी काली करतूतों पर कोई आँच न आने देने के लिये और उनकी काली कमाई को महफ़ूज़ रखने के लिये क्या मुसलमान 'सपा' को वोट और समर्थन दे रहा है या नहीं ? क्यों ज़ाती सियासी फ़ायदे के लिये मुसलमानियत की पवित्रता को ही लोग कठघरे में खड़ा करने पर आमादा हैं ?
     ज़नाब अबु आज़मी साहब पहले भी सपा सुप्रीमो के "रेपिस्ट" बाले विवादास्पद बयान का समर्थन कर चुके हैं।
     दरअसल, सपा ही नहीं बसपा जैसी पार्टीयाँ भी अपनी निश्चित हार को देखकर बौखलाई हुई हैं, क्योंकि कांग्रेस की "सरपरस्ती" उन्हें अब मिलती नहीं दिखायी दे रही है।
     मुस्लिम भाइयों और बहनों, इन सपा, बसपा, कांग्रेस जैसी "राजनैतिक प्राइवेट लिमिटिड कम्पनियोँ" से छुटकारा पाइये, और अपनी तरक़्क़ी की इबारत खुद अपने हाथ से लिखिये। 
     भाजपा को वोट दीजिये। अबकी बार मोदी सरकार। 
***निवेदक ***अनेश कुमार अग्रवाल  

Sunday, April 27, 2014

कश्मीर की ठेकेदारी ?

जनाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला साहब ने फ़रमाया है -
"कश्मीर के लोगों को साम्प्रदायिकता क़ुबूल नहीं है, और यदि भारत साम्प्रदायिक हो जायेगा तो कश्मीर उसके साथ नहीं रहेगा।"
जनाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला साहब, आपसे 3 बातों पर ग़ौर फ़रमाने की गुज़ारिश है :
(1)  इस बात की क्या गारंटी है कि भारत साम्प्रदायिक कतई न हो, और आप उसको साम्प्रदायिक समझने का ड्रामा करने लगें ?  
(2)  भारत उसके संविधान के अनुसार चलता है, यहाँ साम्प्रदायिकता की कोई जगह नहीं है। आया आपकी समझ में।
(3)  आप जैसे लोग कश्मीर की ठेकेदारी करना बंद करें। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और रहेगा।

गिरने की होड़ !

      आम चुनावों में आजकल अब्बल दिखने के लिये अजीबोगरीब गिरने की होड़ लगी हुई है।    
     नेशनल कांफ्रेंस के ज़नाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने कहा है कि "मोदी को वोट देने वालों को डूब मरना चाहिये।" 
     ज़नाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला साहब, आप लोकसभा में बैठकर पूरे भारत देश के लिये गर्व से क़ानून बनाते हो, लेकिन इन कानूनों को 'जम्मू कश्मीर' राज्य में लागू न होने देने के हिमायती बने रहने में आपको ज़रा भी शर्म नहीं आती ? चलिये, फेहरिस्त तो लम्बी है। आपकी तमाम गुस्ताखियों के बाबजूद भी, हम जैसे तमाम देश-प्रेमी आपको तथा आपके भ्रष्ट संगी-साथी जैसे कांग्रेस को वोट देने वालों को हरगिज़ डूब मरने के लिये नहीं कहेंगे, क्योंकि ऐसा कहना इस देश के क़ाबिल मतदाताओं की बेइज़्ज़ती करना होगा। 
     हाँ, भगवान से ये प्रार्थना ज़रूर कर लेंगे, कि आप जैसों की अलगावबादी सोंच बदले, और वह भारत की धड़कन को पूर्णतया आत्मसात कर लें, दिखावे की भावना लेशमात्र भी न रहे, और गिरे हुये बयान देने से बाज़ आयें।  
    

बैंक, लेकिन कंगाल !