यूपी में "समाजबादी पार्टी" की सरकार के काबिज़ हो जाने के बाद से ही पुलिस, पीएसी, प्रशासन एवं अन्य महत्वपूर्ण सरकारी पदों का मोटे तौर पर खुला सुयोग्यता विहीन (Devoid of Merit) "यादवीकरण" करने से दो ख़ास नुक़सान हुये हैं :
(1) 'यादव' उपनामधारी अपने आपको क़ानून से ऊपर समझने लगे हैं। परिणामस्वरूप, यूपी में तहस-नहस होता सरकारी ताना-बाना।
(2) अन्य यादव परिवारों के सुयोग्य, अत्यंत प्रतिभाशाली, सक्षम, शांतिप्रिय और न्यायप्रिय व्यक्तियों की सुयोग्यता, सम्मान और शान में धब्बा लग रहा है।
क्या कारण है कि हाल के बदायूँ जैसे घिनौने कांड में आरोपी पुलिस बालों के अलावा अन्य आरोपी भी अधिकांश "यादव" हैं ?
अतः माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी से अब यह अपेक्षा और माँग करना शायद उचित ही है कि यूपी में सुरसा के मुँह की तरह फैल चुकी जटिल समस्याओं के उपचार में भी पहला क़दम यही होगा कि जाति और धर्म से परे "सक्षम" और "अक्षम" के बीच भेद किया जाये, और तब विभिन्न पदों पर "तैनाती" की जाये और इसके बाद ही अनेकोंएक विकासोन्मुख कार्य किये जाने शेष होंगे।
यहाँ उल्लेख करना शायद ठीक ही होगा कि सत्ता संभालने का कर्तव्य और धर्म 'केवल और केवल' जनसेवा होना चाहिये, न कि किसी जाति विशेष, धर्म विशेष या अपने परिवारजनों का "कैरियर" बनाने या अकूत दौलतमंद बन जाने का कोई 'प्लेटफॉर्म'।
यहाँ उल्लेख करना शायद ठीक ही होगा कि सत्ता संभालने का कर्तव्य और धर्म 'केवल और केवल' जनसेवा होना चाहिये, न कि किसी जाति विशेष, धर्म विशेष या अपने परिवारजनों का "कैरियर" बनाने या अकूत दौलतमंद बन जाने का कोई 'प्लेटफॉर्म'।
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