Wednesday, June 11, 2014

"बुराई" का उद्गम दोषी, नाकि मात्र उपयोगकर्ता !

            "बुराई" के पेड़ की जड़ को ध्वस्त करने से बुराई समाप्त होती है। इसके पेड़ की टहनियों, पत्तों, फूलों और फलों को नष्ट करते रहने से बुराई का पेड़ फिर से उगता रहेगा। "बुराई" के जन्मदाता पर आघात करने से बुराई का निदान संभव हो सकता है। "बुराई" के उपयोगकर्ता (end-user) को ही दण्डित करते रहने से "बुराई" के उदय को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि "बुराई" के वृक्ष के उदय को 'रिश्वत', 'सिफारिश' और 'ऊँचे ओहदों की ठनक' रुपी खाद-पानी से सींचा जाता है, और कवायद होती है  इस पर उगे पत्तों और फूलों को नष्ट करने की। उदहारणस्वरुप :
(1)  'पॉलिथीन' की थैली के उत्पादन बिंदु को कड़ाई से निषिद्ध करना चाहिये, नाकि मात्र उपयोग बिंदु को।
(2)  शराब, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू आदि के उत्पादन बिंदुओं को प्रभावी ढंग से हतोत्साहित करना पड़ेगा, उपभोगकर्ताओं हेतु इनके उपभोग से उत्पन्न हानियों के केवल जन-जागरण अभियानों मात्र से यह बुराईयाँ कदापि नहीं मिटेंगी।
(3)  अवैध इमारतों के उदय एवं निर्माण बिन्दुओं को कड़ाई से रोकना पड़ेगा, इनके खरीदारों और उपयोगकर्ताओं को दण्डित करना 'अन्याय' होगा, और वह भी 'अवैध' इमारत के बनने और उपयोग करने के 20-25 वर्षों के बाद। "कैंपा-कोला" सोसाइटी, मुंबई के निवासियों पर होने बाला 'अन्याय' इस प्रकार का ताज़ा दुःखद उदाहारण है।
(4)   'समानता के सिद्धांत' की अनदेखी अत्याचार को जन्म देती है। 'आदर्श सोसाइटी' मुंबई की 'अनियमितताओं' का उपचार क्या 'कैंपाकोला' सोसाइटी, मुंबई की तर्ज़ पर किया गया है ?      

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