Sunday, April 27, 2014

कश्मीर की ठेकेदारी ?

जनाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला साहब ने फ़रमाया है -
"कश्मीर के लोगों को साम्प्रदायिकता क़ुबूल नहीं है, और यदि भारत साम्प्रदायिक हो जायेगा तो कश्मीर उसके साथ नहीं रहेगा।"
जनाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला साहब, आपसे 3 बातों पर ग़ौर फ़रमाने की गुज़ारिश है :
(1)  इस बात की क्या गारंटी है कि भारत साम्प्रदायिक कतई न हो, और आप उसको साम्प्रदायिक समझने का ड्रामा करने लगें ?  
(2)  भारत उसके संविधान के अनुसार चलता है, यहाँ साम्प्रदायिकता की कोई जगह नहीं है। आया आपकी समझ में।
(3)  आप जैसे लोग कश्मीर की ठेकेदारी करना बंद करें। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और रहेगा।

गिरने की होड़ !

      आम चुनावों में आजकल अब्बल दिखने के लिये अजीबोगरीब गिरने की होड़ लगी हुई है।    
     नेशनल कांफ्रेंस के ज़नाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने कहा है कि "मोदी को वोट देने वालों को डूब मरना चाहिये।" 
     ज़नाब फ़ारूख़ अब्दुल्ला साहब, आप लोकसभा में बैठकर पूरे भारत देश के लिये गर्व से क़ानून बनाते हो, लेकिन इन कानूनों को 'जम्मू कश्मीर' राज्य में लागू न होने देने के हिमायती बने रहने में आपको ज़रा भी शर्म नहीं आती ? चलिये, फेहरिस्त तो लम्बी है। आपकी तमाम गुस्ताखियों के बाबजूद भी, हम जैसे तमाम देश-प्रेमी आपको तथा आपके भ्रष्ट संगी-साथी जैसे कांग्रेस को वोट देने वालों को हरगिज़ डूब मरने के लिये नहीं कहेंगे, क्योंकि ऐसा कहना इस देश के क़ाबिल मतदाताओं की बेइज़्ज़ती करना होगा। 
     हाँ, भगवान से ये प्रार्थना ज़रूर कर लेंगे, कि आप जैसों की अलगावबादी सोंच बदले, और वह भारत की धड़कन को पूर्णतया आत्मसात कर लें, दिखावे की भावना लेशमात्र भी न रहे, और गिरे हुये बयान देने से बाज़ आयें।  
    

बैंक, लेकिन कंगाल !