Wednesday, April 9, 2014

मातहत बेईमान, मुखिया ईमानदार ?

         एक मशहूर क़िस्सा सत्य घटना पर आधारित है, कि एक दिखाबटी समाज सेवक और राजनेता अपने करीबियों को अपने अकूत काले धन को सफ़ेद करने का नायाव तरीक़ा बताते हुये कहता है कि जनता के बीच जाकर अमुक जन-कार्य के लिये चंदा इकठ्ठा करो। उसके सिपहसलार यह कहते हुए असहमति जताते हैं कि आप जैसे कद्दाबर नेता और धनवान को आख़िर छोटे-मोटे चंदे की क्या ज़रूरत है? ये छद्म समाजसेवी नेता समझाते हुये कहता है, कि वह जानता है कि 5, 10, 50, 100 रुपये देने वालों के चंदे से उसका कोई भला होने वाला नहीं है, लेकिन चंदे में मिली इस छोटी रक़म को जब वह अपनी अकूत काली कमाई में मिला देगा, तो उसकी सारी रक़म "सफ़ेद" हो जायेगी।
     सुरसा के मुँह की तरह बढ़ी बसपा सुप्रीमो की दौलत भी शायद इसी प्रयोग का नतीज़ा है जो एक चुनाव से दूसरे चुनाव में दाख़िल हलफनामों में उनकी बेतहाशा बढ़ी धन सम्बन्धी घोषणाओं की तस्दीक़ करता है। सत्ता में रहते हुये उनके जन्म-दिन पर 'धन उगाही' से कौन नहीं वाक़िफ़ है? उनके सगे छोटे भाई की उनके शाशनकाल में अवतरित हुयीं दर्जनों कम्पनियाँ अक्सर चर्चा में रहतीं हैं। उन्होंने जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपयों की बर्बादी करके जीते-जी अपनी मूर्तियाँ लगवा दीं, बड़े-बड़े स्मारक बनबा दिये, लेकिन दलित भाई-बहनों का वोट ठगने के बाबजूद भी उनके लिये दिल्ली के 'एम्स' जैसा एक अदद अस्पताल यू०पी० में वह नहीं बनबा पायीं, जहाँ दलित भाई-बहनों का जीवन-भर मुफ्त इलाज़ सम्भव हो पाता।  
     सर्वविदित है कि सत्ता में रहते हुये उनका मातहत मंत्री या 'ब्यूरोक्रेट' उनके संज्ञान के बिना एक भी "कार्य" या कोई "आर्थिक निर्णय" नहीं ले सकता था। ऐसे में 'एन०आर०एच०एम०' घोटाले में तत्कालीन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की अरबों-खरबों की काली कमाई पर न्यायिक तलवार लटक रही है, तो फिर तत्कालीन "मुखिया" की "ईमानदारी" को न्यायिक जाँच की कसौटी पर क्यों नहीं परखा जाता है। आख़िर, काले कारनामें हुये तो उन्हीं की सरपरस्ती में हैं। बसपा सुप्रीमो के शाशनकाल में दो सी०एम०ओ०, एक डिप्टी सी०एम०ओ० और एक इंजीनियर श्री गुप्ता की रहस्यमयी मौतों से उक्त सन्देह और घने हो जाते हैं।
     निष्कर्ष-विहीन जाँचें रह-रहकर होती रहती हैं, न्यायिक प्रक्रियायें अपना काम करती रहती हैं। प्रिय देशवासियों, लोकसभा के आम-चुनाव सामने हैं, अब जनता को अपने वोट की ताक़त के जरिये अपना काम करना है।          

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