Sunday, March 30, 2014

अपराध को कांग्रेस का समर्थन ?

          सहारनपुर (उ० प्र० ) से कांग्रेस लोकसभा उम्मीदवार श्री इमरान मसूद के मामले में कल (29.03.2014) सहारनपुर रैली में श्री राहुल गाँधी की लीपा-पोती के बाद कांग्रेस श्री इमरान मसूद के समर्थन में आज खुले तौर पर उतर आयी है। कांग्रेस के 'लीगल सेल' ने कहा है कि "उजागर किया गया श्री नरेन्द्र मोदी को जान से मारने की धमकी देने वाला श्री इमरान मसूद का वीडिओ छः माह पुराना है, जब श्री मसूद समाजवादी पार्टी में थे।" इससे सम्बन्धित चार प्रश्न कांग्रेस को देशवासिओं को देने चाहिये :-
     1.   श्री इमरान मसूद ने कल (29.03.2014) को जेल जाते समय कहा था कि "नरेन्द्र मोदी के मामले में वो 100 बार जेल जाने को तैयार हैं, लेकिन अपनी मंशा नहीं बदलेंगे।" श्री इमरान मसूद ने अपनी उक्त धमकी को न केवल दोहराया (Reiterate किया) है, बल्कि उनका बयान छः महीने पुराना होने वाला बहाना (Excuse) भी उन्होंने नहीं किया। फिर कांग्रेस किस मुँह से श्री इमरान मसूद का बयान छः महीने पुराना होने वाला 'एक्सक्यूज़' ले रही है, और मौज़ूदा समय में उनको पाक-साफ़ साबित करने पर आमादा है?
     2.   एक अपराधी को सज़ा देने के लिये क्या उसका अपराध ताज़ा अर्थात हाल में घटित हुआ होना चाहिये? अपराध कथित तौर पर छः महीने बाद यदि उजागर हुआ है, तो क्या अब 29.03.2014 में उस अपराध के लिये कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है?
     3.   भारत के देश-भक्त मुस्लिम समाज को कांग्रेस ने क्या इतना कमज़ोर समझ रखा है, कि उनमें ग़लत-को-ग़लत और सही-को-सही कहने की हिम्मत नहीं है ? दरअसल, कांग्रेस मुस्लिम समाज को अपने वोट-बैंक के आलावे कुछ नहीं समझती है।
     4.   देश का मुस्लिम समाज कहीं नाराज़ न हो जाये और वोट न करे! क्या इसलिये कांग्रेस श्री इमरान मसूद के अपराध का समर्थन कर रही है? क्या कांग्रेस की नज़र महज़ मुस्लिम भाईयों-बहनों के वोट पर है?

Saturday, March 22, 2014

सच्ची धर्मनिरपेक्षता की मिसाल

          उत्तराखण्ड टिहरी के शिवानन्द आश्रम के 71 वर्षीय महंत श्रद्धये शिवानन्द ने अपने ख़र्चे से कई बार सैकड़ो किलोमीटर का सफ़र तय कर कोर्टों के चक्कर लगाकर पुख्ता सबूतों को कोर्ट में पेश करने के आधार पर एक मुस्लिम युवक नासिर हुसैन की पैरवी करके उसको 7 वर्षों की क़ैद से ही केवल आज़ाद नहीं कराया, बल्कि सच्ची धर्मनिरपेक्षता और हिन्दू-मुसलमान के बीच सौहार्द एवं प्रेम की अनूठी मिसाल भी पेश की है। श्री नासिर हुसैन शिवानन्द आश्रम में मठ निर्माण के कार्य में लगे थे, वहीं से एटीएस ने उनको आतंकवादी होने के सन्देह पर ग़लत तरीक़े से गिरफ्तार कर लिया था। विशेष न्यायाधीश ने भी महन्त की सराहना की है। इसमें एक बात और होनी चाहिये कि बेक़सूर के ऊपर ग़ैरकानूनी कार्यवाही, गिरफ्तारी और जेल में रखने की जबाबदेही तय होकर कुसूरबारों को सज़ा मिलनी चाहिये और निर्दोष को मुआबजा मिलना चाहिये।
          दरअसल, मुसलमानों में हिंदुओं का झूठा खौफ़ दिखाकर कुछ सियासी पार्टियाँ अपनी सियासत की अर्से से दुकाने चला रहीं हैं, ऐसी पार्टियों और इस क़िस्म के लोगों के लिये हिन्दू महन्त का यह सफल प्रयास एक करारा जबाब तो है ही, सच उजागर करने की एक बेहतरीन मिसाल भी है।
          झूठी साम्प्रदायिकता के नाम पर इन घोर साम्प्रदायिक नेताओं ने मुसलमानों को आज़तक केवल वोट बैंक समझा है, कभी उनका वैसा उत्थान नहीं किया, जिसके वे हक़दार हैं। इतना ही नहीं, झूठी साम्प्रदायिकता का हौवा खड़ा करके और जातिवाद का ज़हर फैलाकर इन बेईमान सियासतदानों ने अकूत दौलत जमा कर ली है, कुछ ने तो अपने पूरे कुनवे को ही सांसद, विधायक और मंत्री बना डाला है।ऐसे साम्प्रदायिक नेताओं से साबधान रहने की ज़रूरत है। 

Monday, March 17, 2014

श्रीमान केजरीवाल मोहरा मत बनना, वरना ........

          2014 के लोकसभा आम चुनावों में श्रीमान नरेन्द्र मोदी के उत्तर प्रदेश के बनारस से भाजपा उम्मीदबार के रूप में ऐलान के बाद देश की और ख़ास तौर से यू पी की छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गई है। साम्प्रदायिकता, परिवारबाद और जातिवाद का ज़हर फैलाकर राजनीति करने वाले और अरबो-ख़रबों का घोटाला करने वाले लोग मोदी के विरुद्ध लामबंद होने लगे हैं। उनको श्री अरविंद केजरीवाल के रूप में एक मोहरा नज़र आने लगा है, जिस पर समर्थन का दॉव लगाने में खोने को कुछ नहीं है, बल्कि राजनीति के आवरण में इन दलों द्वारा देश की जनता के साथ की गयी अपनी ग़द्दारी पर पर्दा पड़ने का एक "अवसर" दिखायी पड़ने लगा है। कोई राजनीतिक दल कह रहा है कि बनारस से चुनाव लड़ने पर हम केजरीवाल को समर्थन दे देंगे, कोई यह जुगत लगाये है, कि दिखावे के लिये कोई कमज़ोर प्रत्याशी खड़ा कर देंगे।
          केजरीवाल जी, मोहरा बनने की स्वीकारता के बाद फिर दिल्ली की तर्ज़ पर यह मत कहने लगना, कि हमने तो समर्थन माँगा नहीं था, उन्होंने दे दिया, तो हम क्या करें, क्योंकि देश के इन ग़द्दारों और भ्रष्टाचारियों को खेबनहार के रूप में "आप" दिखायी पड़ रहे हैं। इसलिए इनके लिये मोहरा बनकर इनके गुनाहों के खेवनहार बनने का पाप मत करना, वरना बनारस की जनता तो आपको माक़ूल जबाब देगी ही, यह देश भी आपको कभी माफ़ नहीं करेगा।

Friday, March 14, 2014

भागेदारी करना या बिक जाना

          2014 के लोकसभा आम चुनावों में अबकी बार जनता सीधे तौर पर अपनी पसन्द की सरकार बनाने या सत्तारूढ़ रही पिछली सरकार को हटाने के लिये वोट करेगी। इस बार जनता उन क्षेत्रीय दलों को वोट नहीं देगी, जो लोकसभा चुनावों में झूठा दिखावा करके केंद्र सरकार की उन विफलताओं और भ्रष्टाचारों को गिनाते हैं, जिनमें सालों-साल समर्थन एवं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग देकर सरकार चलबाने में वह ख़ुद सहभागी रहे हैं। इस प्रकार के क्षेत्रीय-दल जनता के साथ छल-कपट करके ख़ुद के सहयोग से चलने बाली भ्रष्ट एवं बिफल केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध दिखावे के लिये चुनाव लड़ते तो अकेले हैं, लेकिन चुनाव बाद अपने निजी फ़ायदे के लिये जनता से मिले वोट और समर्थन को केंद्र में सत्तारूढ़ होने बाली ऐसी सरकार के हाथों "क़ीमत वसूलकर " बेंच देते हैं। इस प्रकार चुनाव से पहले अमुक पार्टी के विरुद्ध चुनाव लड़ना, उसकी घोर आलोचना करना और चुनाव बाद उसी पार्टी के साथ गठबंधन कर लेना (सरकार में शामिल होकर या बाहर से) संविधान की आत्मा और शुद्ध राजनीति के चरित्र की हत्या करना है।
           ऐसे ठग, चालबाज़ क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के  फंदे में आम जनता को नहीं फँसना चाहिये। वैसे भी अत्यंत सीमित सोच वाले इन  क्षेत्रीय दलों को सामान्यतः राष्ट्रीय स्तर की विचारधारा से विशेष कुछ लेना-देना होता भी नहीं है। यह तो बस निजी स्वार्थ की जुगत में जनता को भ्रमित करके उसके वोट को किसी तरीक़े से ठग लेना चाहते हैं, ताकि ख़ुद के स्याह-सफ़ेद कारनामों की आँच से अपने आपको महफ़ूज़ रख सकें। 
          अतः भारत की समझदार जनता को इस बार यह तय करना है कि उसको सरकार बनाने में सीधे भागेदारी करनी है या अपने वेशकीमती वोट को स्वार्थी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के हाथों बिकवाना है।