2014 के लोकसभा आम चुनावों में श्रीमान नरेन्द्र मोदी के उत्तर प्रदेश के बनारस से भाजपा उम्मीदबार के रूप में ऐलान के बाद देश की और ख़ास तौर से यू पी की छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गई है। साम्प्रदायिकता, परिवारबाद और जातिवाद का ज़हर फैलाकर राजनीति करने वाले और अरबो-ख़रबों का घोटाला करने वाले लोग मोदी के विरुद्ध लामबंद होने लगे हैं। उनको श्री अरविंद केजरीवाल के रूप में एक मोहरा नज़र आने लगा है, जिस पर समर्थन का दॉव लगाने में खोने को कुछ नहीं है, बल्कि राजनीति के आवरण में इन दलों द्वारा देश की जनता के साथ की गयी अपनी ग़द्दारी पर पर्दा पड़ने का एक "अवसर" दिखायी पड़ने लगा है। कोई राजनीतिक दल कह रहा है कि बनारस से चुनाव लड़ने पर हम केजरीवाल को समर्थन दे देंगे, कोई यह जुगत लगाये है, कि दिखावे के लिये कोई कमज़ोर प्रत्याशी खड़ा कर देंगे।
केजरीवाल जी, मोहरा बनने की स्वीकारता के बाद फिर दिल्ली की तर्ज़ पर यह मत कहने लगना, कि हमने तो समर्थन माँगा नहीं था, उन्होंने दे दिया, तो हम क्या करें, क्योंकि देश के इन ग़द्दारों और भ्रष्टाचारियों को खेबनहार के रूप में "आप" दिखायी पड़ रहे हैं। इसलिए इनके लिये मोहरा बनकर इनके गुनाहों के खेवनहार बनने का पाप मत करना, वरना बनारस की जनता तो आपको माक़ूल जबाब देगी ही, यह देश भी आपको कभी माफ़ नहीं करेगा।
केजरीवाल जी, मोहरा बनने की स्वीकारता के बाद फिर दिल्ली की तर्ज़ पर यह मत कहने लगना, कि हमने तो समर्थन माँगा नहीं था, उन्होंने दे दिया, तो हम क्या करें, क्योंकि देश के इन ग़द्दारों और भ्रष्टाचारियों को खेबनहार के रूप में "आप" दिखायी पड़ रहे हैं। इसलिए इनके लिये मोहरा बनकर इनके गुनाहों के खेवनहार बनने का पाप मत करना, वरना बनारस की जनता तो आपको माक़ूल जबाब देगी ही, यह देश भी आपको कभी माफ़ नहीं करेगा।
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