मेधा (Intellect) योग्यता और क्षमता का दर्पण होती है, और वही उन्नति के परिणाम देने में सक्षम होती है। लेकिन जब जाति, मज़हब, परिवारबाद ही पैमाने बना दिये जाएं, तो फिर विकास और जन-कल्याण की अपेक्षायें करना या तो मुंगेरी लाल के हसीन सपनें देखने जैसा होता है या फिर सोची-समझी रणनीति के तहत दिखाबा (Posturing) करना होता है।
आजकल समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख माननीय श्री मुलायम सिंह यादव उ० प्र० में अपने ही पुत्र अखिलेश यादव की सरकार पर आये-दिन तंज कसते दिखायी देते हैं, नाक़ामयाबियाँ गिनाते रहते हैं, विकास का ककहरा सिखाते दिखायी देते हैं। लोकसभा के 2014 के चुनाव-परिणामों के बाद दबी ज़ुबान से ही सही, लेकिन बहुधा "मोदी अलर्ट" भी जारी करते रहते हैं। आगामी 2017 के उ० प्र० विधान-सभा चुनाव परिणामों की हक़ीक़त की आहट उन्हें डराती रहती है।
मान्यवर, जब 'परिवारबाद', 'जातिवाद' और 'संप्रदायबाद' के पैमानों पर "ओहदे" सजाये जाते हों, तब भ्रष्टाचारी, ग़रीबी, गुंडागर्दी के ही फल आम-जनता को मज़बूरन खाने पड़ते हैं। यथार्थ में यदि सकारात्मक 'फल' की चाहत होती, तो 'कर्म' भी उसी के अनुकूल किया गया होता।
फिर......
*उ० प्र० पुलिस में भर्ती और तैनाती जाति को देखकर नहीं होतीं;
*मंत्री, सांसद, विधायक आदि परिवार, जाति और मज़हब के आधार पर तय नहीं होते;
*गुंडई को सुविधानुसार फलने-फूलने न दिया जाता और उस पर कभी-कभार की होने वाली कार्यवाही भी जाति और धर्म देखकर नहीं होती;
*लोहिया जी के 'समाजबाद' को फिर हक़ीक़त में संजीदगी से जिया जाता, आये-दिन उसका जनाज़ा न निकाला जाता, आदि-आदि।
फिर......
*उ० प्र० पुलिस में भर्ती और तैनाती जाति को देखकर नहीं होतीं;
*मंत्री, सांसद, विधायक आदि परिवार, जाति और मज़हब के आधार पर तय नहीं होते;
*गुंडई को सुविधानुसार फलने-फूलने न दिया जाता और उस पर कभी-कभार की होने वाली कार्यवाही भी जाति और धर्म देखकर नहीं होती;
*लोहिया जी के 'समाजबाद' को फिर हक़ीक़त में संजीदगी से जिया जाता, आये-दिन उसका जनाज़ा न निकाला जाता, आदि-आदि।
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