आज दिनाँक 21.10.2014 मंगलवार 17:15 बजे 'जी न्यूज़ टीवी चैनल' पर दीपावली पर्व के मद्देनज़र खाद्य-पदार्थों, मिठाईयों आदि में मिलावट पर एक सालाना रबायती चर्चा हो रही थी। एंकर के अतिरिक्त चार 'पैनलिस्ट' और भी मौज़ूद थे। वर्तमान सरकार के पक्ष को रखने वाले प्रवक्ता महोदय 2011 में आये नये क़ानून के अन्तर्गत लाइसेंस रजिस्ट्रेशन, पैकेजिंग, लोक जन-जागरण, सेल्फ रेगुलेशन, लैब टेस्टिंग आदि आदि नये और अधिक प्रभावी सरकारी कदमों के बारे में बता रहे थे। मिलावट के मामलों के लिये स्पेशल कोर्ट्स स्थापना की भी बात बतायी गयी। पिछली कांग्रेस लेड यूपीए सरकार की ओर से प्रवक्ता महोदय ने अपनी अकर्मण्यताओं को स्वीकारा भी, और अधिक कड़े क़ानून बनाने में ताली बजाने की भी गारंटी दी।
आख़िर इस प्रकार के सालाना रस्मी कार्यक्रमों में कोई भी पक्ष ज़मीनी हक़ीक़त को दो-चार वाक्यों में ही क्यों नहीं बयान करता कि मिलावट के विरुद्ध बनाये गये यह क़ानून और सरकारी क़दम भारत में कभी भी न तो प्रभावी ढंग से कामयाव हुये हैं और न होंगे, जब तक कि :
*मिलावटी वस्तुओं की प्रभावी छापेमारी;
*पारदर्शी और ईमानदार 'सैंपलिंग', 'टेस्टिंग';
*जाति-बिरादरी आधारित भेदभाव रहित, ईमानदारी से एफआईआर दर्जगी नहीं होगी; और
*अदालती कार्यवाही में रिश्वतखोरी, लेटलतीफी और भ्रष्टाचार अपनी जड़े जमाये रहेगा।
केवल क़ानून बना देने मात्र से बुराइयाँ कभी नहीं मिटेंगी, जब तक कि सख़्ती और ईमानदारी से क़ानून का क्रियान्यवयन और उसका अनुश्रवण (Monitoring of the execution of law) नहीं होगा।
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