16 दिसम्बर, 2014 वैश्विक इतिहास में वह काला दिन बन गया है जब नर-पिशाच "तहरीके-ए-तालिवान पाकिस्तान" ने पेशावर पाकिस्तान के एक स्कूल में इंसानियत को कुचल डाला और बेगुनाह, मासूम, हँसते-खेलते फूल जैसे 132 बच्चों एवं 10 स्कूल-स्टाफ कर्मियों का बेरहमी से कत्लेआम कर डाला। पूरी दुनिया में मानवता का दिल कराह उठा है। इंसानियत हतप्रभ और शब्द-विहीन होकर रह गयी है। दहशतगर्दों के इस कायरतापूर्ण, बर्बर और वहशियाना नीचकर्म की निंदा करने के लिये शब्दकोष में मौज़ूद शब्द नाकाफ़ी हैं।
आतंकबाद के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष में पूरी दुनिया को ईमानदारी से संगठित होना पड़ेगा। पाकिस्तान आख़िर भारत के ही जिस्म का एक हिस्सा है, आज हर भारतवासी का ग़म में डूबा होना स्वाभाविक है। पाकिस्तानी हुक़ूमत और पाकिस्तानी सेना जितनी जल्दी हो, ख़ुदा के वास्ते, ये समझ जाये कि अपनी छत के नीचे किसी भी तरीक़े की दहशतगर्दी को पालने-पोषने का अंजाम कितना भयावाह और दर्दनाक होता है, तभी तो आज भी 'हाफ़िज़ सईद' जैसा सिरफिरा और खुदगर्ज आतंकवादी इस दर्दनाक, असहनीय हादसे का कुसूरवार भारत को बताने का दुस्साहस कर रहा है, और भारत पर हमला करने की धमकी दे रहा है।
17.12.2014
No comments:
Post a Comment