लोभ देकर, छल करके एवं बलपूर्वक धर्मांतरण (धर्म परिवर्तन/ धर्म परावर्तन) भारतवर्ष में विधि-विरुद्ध है। स्वतंत्र भारत में धर्मांतरण से उपजा विवाद सदैव ही वैमनस्यता को उत्पन्न करने वाला, समाज और देश के लिये घातक तथा विकास के लिये बाधक रहा है।
बहुधा प्रभावित व्यक्ति, धर्मांतरण क्रियाओं में संलग्न व्यक्तियों या संगठनों द्वारा धर्मांतरण के पश्चात् आरोप-प्रत्यारोप करते देखा जाना आम बात होने लगी है।
भारतीय क़ानून वर्तमान में धर्मान्तरण को प्रतिबंधित नहीं करता है, अपितु उसके लिये कुछ मापदंड तथा दशायें निर्धारित करता है। इन्हीं मापदंडो तथा दशाओं को जब कसौटी पर परखने की बारी आती है, समस्यायें और विरोधाभास जन्म लेने लगता है, परस्पर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो जाता है और विवाद सामने आने लगते हैं।
समस्या का स्थायी निदान निम्न प्रकार से संभव दिखायी देता है :
बहुधा प्रभावित व्यक्ति, धर्मांतरण क्रियाओं में संलग्न व्यक्तियों या संगठनों द्वारा धर्मांतरण के पश्चात् आरोप-प्रत्यारोप करते देखा जाना आम बात होने लगी है।
भारतीय क़ानून वर्तमान में धर्मान्तरण को प्रतिबंधित नहीं करता है, अपितु उसके लिये कुछ मापदंड तथा दशायें निर्धारित करता है। इन्हीं मापदंडो तथा दशाओं को जब कसौटी पर परखने की बारी आती है, समस्यायें और विरोधाभास जन्म लेने लगता है, परस्पर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो जाता है और विवाद सामने आने लगते हैं।
समस्या का स्थायी निदान निम्न प्रकार से संभव दिखायी देता है :
अथवा
* धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को जिला जज सरीखे जनपद स्तर के न्यायिक अधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित करबाकर परीक्षण किया जाये कि वह देश के क़ानून के तहत अपने वर्तमान धर्म को परिवर्तित करके अमुक धर्म में धर्मांतरित होना चाहता है, अतः उसे अनुमति प्रदान की जाये। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया पारदर्शी होने के साथ-साथ एक अत्यंत छोटी समयावधि के भीतर सम्पन्न होनी चाहिये। एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन का एक अनिवार्य समयावधि अंतराल भी निर्धारित किया जा सकता है।
21.12.2014 (Sunday)
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