यदि "गाँधी" शब्द श्रीमान राहुल और श्रीमती प्रियँका के नामों से हटा दिया जाये, तो ढ़ूँढ़ने पर भी भारतवर्ष में उनका कोई राजनैतिक वज़ूद नहीं मिलेगा। अब ऐसे लोग और उनकी कांग्रेस पार्टी श्री नरेन्द्र मोदी जैसे कर्मयोगी, विकास पुरुष, परिणामदायी राजनेता पर जाति का कार्ड खेलने का यदि आरोप लगायें, तो यह कांग्रेस पार्टी और उनके लोगों की चुनावों मे निश्चित हार से उपजी हताशा के सिवाए कुछ भी नहीं है। 2014 के आम चुनावों के नौवें एवम अन्तिम चरण के दौर में पहुँचते-पहुँचते कांग्रेस के पास कहने और प्रदर्शित करने के लिये अब बचा ही क्या है ?
ऐसे में श्रीमान राहुल और श्रीमती प्रियँका जब जाति का हथकंडा आज़माने पर आमादा हो ही गये हैं, तो लगे हाथ वह क्या देश को यह बताने का कष्ट करेंगे कि वे किस जाति से आते हैं ? कितना अच्छा होता यदि वह मुद्दोँ पर राजनीतिक वहस करते।
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