लोकसभा आम चुनाव 2014 में अपेक्षित परिणाम न मिलने पर राजनैतिक पार्टियाँ आत्ममंथन या आत्मचिंतन करने के वजाय दुर्भाग्य से धमकी भरा परमंथन करने पर जुटी हैं, और कोशिश में हैं कि हार का ठीकरा कैसे भी दूसरों के सर फोड़ा जाये।
एक खबर के अनुसार बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने एक 'प्रेस-कॉन्फ्रेंस' में धमकी भरे लहज़े में कहा है कि :
"मुसलमान अपने फ़ैसले पर पछताएँगे।"
"…दलित अब भी हमारी पार्टी से जुड़े हुये हैं, लेकिन मुसलमान बहकावे में आ गये। मुसलमान हमेशा ग़लत क़दम उठाते हैं, और पछताते हैं…।"
सुश्री मायावती, मुस्लिम और दलित भाई-बहनों को क्या अपना ज़रख़रीद ग़ुलाम समझती हैं? ताज़ कॉरिडोर, स्मारक, मूर्ति, स्वास्थ्य विभाग (NRHM), यूपी चीनी मिलों के विक्रय, आदि आदि में अरबों-खरबों के वह चाहे कितने भी घपले-घोटाले करती चली जायें, सांसद विधायकी की "टिकट विक्री" करती रहें, आय से अधिक संपत्ति इकठ्ठा कर लें, उनके मन्तव्य में उनका "बंधुआ वोट बैंक" चुपचाप उनको वोट देकर सत्तासीन करता रहे, और वह स्पष्टतया सामन्तबादी शैली में अपने सगे छोटे भाई की करोड़ों-अरबों की दर्जनों कम्पनियों के माध्यम से अपना 'बेनामी' साम्राज्य स्थापित करती रहें, क्या ऐसे ही होगा दलित कल्याण? क्या इसी तरह मुस्लिम भाई-बहनों को देश की विकास-धारा में उनका हक़ मिल सकेगा?
अरे ! आपके पास जाति आधारित वैमनस्यता और धर्म के आधार पर बँटवारे के सिवाय आम जनमानस के लिये क्या कभी कोई विकास का एजेंडा रहा है? हाँ, ख़ुद का अरबों-खरबों का विकास आपने ज़रूर कर लिया, बेचारा दलित, मुस्लिम समाज़ एवं अन्य ग़रीब तबका तो वहीं का वहीं रहा। इसलिये 2014 के लोकसभा चुनावों में जनता ने देश की कुछ और भ्रष्ट क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ आपकी पार्टी का भी वज़ूद ही ख़त्म कर दिया, फिर भी आप जैसे लोग गंभीर चिंतन के वज़ाय कभी दलितों को, कभी मुस्लिमों को, कभी किसी और को कुसूरवार ठहराने पर आमादा हैं।
सुश्री मायावती जी, वैसे भारत का मुस्लिम समाज़ इतना नासमझ नहीं है, जितना आप समझ रहीं हैं। मुस्लिमों का निरादर करने का आपको क्या हक़ है? दरअसल, अब आप जैसों की राजनैतिक दुकानें बंद होने की कगार पर हैं, जहाँ पर केवल मज़हव और जाति की कड़ुवाहट बिकती हो। अब आप लोगों को जाति एवं धर्म से परे सर्वजन-विकास, रोज़गार सृजन, मँहगाई नियंत्रण, भ्रष्टाचार मुक्ति, अपराध मुक्ति, त्वरित विधिक न्यायिक व्यवस्था, महिला सुरक्षा, बेहतर स्वास्थ सुविधाओं का सामान अपनी राजनैतिक दुकानों में सजाना पड़ेगा।
मुस्लिम भाई-बहनों को भी किन्हीं अन्य भारतवासियों की तरह तरक़्क़ी और विकास चाहिये, अमन-चैन की ज़िंदगी चाहिये, सरकार चाहे किसी की भी हो। अब इस विचारधारा पर चिंतन होना चाहिये।
सुश्री मायावती, मुस्लिम और दलित भाई-बहनों को क्या अपना ज़रख़रीद ग़ुलाम समझती हैं? ताज़ कॉरिडोर, स्मारक, मूर्ति, स्वास्थ्य विभाग (NRHM), यूपी चीनी मिलों के विक्रय, आदि आदि में अरबों-खरबों के वह चाहे कितने भी घपले-घोटाले करती चली जायें, सांसद विधायकी की "टिकट विक्री" करती रहें, आय से अधिक संपत्ति इकठ्ठा कर लें, उनके मन्तव्य में उनका "बंधुआ वोट बैंक" चुपचाप उनको वोट देकर सत्तासीन करता रहे, और वह स्पष्टतया सामन्तबादी शैली में अपने सगे छोटे भाई की करोड़ों-अरबों की दर्जनों कम्पनियों के माध्यम से अपना 'बेनामी' साम्राज्य स्थापित करती रहें, क्या ऐसे ही होगा दलित कल्याण? क्या इसी तरह मुस्लिम भाई-बहनों को देश की विकास-धारा में उनका हक़ मिल सकेगा?
अरे ! आपके पास जाति आधारित वैमनस्यता और धर्म के आधार पर बँटवारे के सिवाय आम जनमानस के लिये क्या कभी कोई विकास का एजेंडा रहा है? हाँ, ख़ुद का अरबों-खरबों का विकास आपने ज़रूर कर लिया, बेचारा दलित, मुस्लिम समाज़ एवं अन्य ग़रीब तबका तो वहीं का वहीं रहा। इसलिये 2014 के लोकसभा चुनावों में जनता ने देश की कुछ और भ्रष्ट क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ आपकी पार्टी का भी वज़ूद ही ख़त्म कर दिया, फिर भी आप जैसे लोग गंभीर चिंतन के वज़ाय कभी दलितों को, कभी मुस्लिमों को, कभी किसी और को कुसूरवार ठहराने पर आमादा हैं।
सुश्री मायावती जी, वैसे भारत का मुस्लिम समाज़ इतना नासमझ नहीं है, जितना आप समझ रहीं हैं। मुस्लिमों का निरादर करने का आपको क्या हक़ है? दरअसल, अब आप जैसों की राजनैतिक दुकानें बंद होने की कगार पर हैं, जहाँ पर केवल मज़हव और जाति की कड़ुवाहट बिकती हो। अब आप लोगों को जाति एवं धर्म से परे सर्वजन-विकास, रोज़गार सृजन, मँहगाई नियंत्रण, भ्रष्टाचार मुक्ति, अपराध मुक्ति, त्वरित विधिक न्यायिक व्यवस्था, महिला सुरक्षा, बेहतर स्वास्थ सुविधाओं का सामान अपनी राजनैतिक दुकानों में सजाना पड़ेगा।
मुस्लिम भाई-बहनों को भी किन्हीं अन्य भारतवासियों की तरह तरक़्क़ी और विकास चाहिये, अमन-चैन की ज़िंदगी चाहिये, सरकार चाहे किसी की भी हो। अब इस विचारधारा पर चिंतन होना चाहिये।
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