Monday, September 15, 2014

जलप्रलय की विभीषिकायें !

  
गत वर्ष (2013) उत्तराखण्ड और इस वर्ष (2014) जम्मू काश्मीर राज्य में भयंकर बाढ़ और वर्षा से जो भारी तवाही हुयी है, उसमें मौसम के मिज़ाज में आ रहे बदलाव की आहट तो सुनायी पड़ ही रही है, लेकिन राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की आपराधिक संलिप्तता, अकर्मण्यता और कर्तव्यहीनता भी तवाही के मुख्य कारणों में से हैं।
कुछ  मुख्य  कारण :
 1. शहरों एवं आवादी वाले इलाकों के "ड्रेनेज सिस्टम"  को निर्बाध (Clear) नहीं रखा गया है, फलस्वरूप अतिवृष्टि से उपजे पानी की निकासी नहीं हो पायी।
 2. नदियों, झीलों के किनारों का अतिक्रमण करके उनको संकुचित करके बेतरतीब, अन्धाधुंद, पर्यावरणविरुद्ध, ग़ैरक़ानूनी निर्माण होने दिया गया।
 3. पर्याप्त वृक्षारोपण न किया जाना एवं बृक्षों की अन्धाधुंद कटाई सरकारी संलिप्तता के कारण निर्बाध जारी है।
 4. जल संचयन की व्यवस्थाओं की अनदेखी, पोखरों और तालाबों का विलुप्तीकरण समस्याओं की भयावहता को बढ़ा रहा है।
समस्या के निदान के कुछ पहलू  :
 1. समस्याओं के जो कारण वर्णित किये गये हैं, जब तक क़ानून तोड़ने वालों और शिथिलताओं के जिम्मेदारों को चिन्हित कर उनको कठोर दण्ड नहीं दिया जायेगा, देश से इस प्रकार की समस्याओं का स्थाई उपचार सम्भव नहीं हो पायेगा।
 2. संभावित खतरों एवं समस्याओं का पूर्वानुमान करके, बेहतर आपातकाल प्रबंधन के साथ, समाधान परक नवीन परियोजनाओं का निर्माण कर एवं उनका शत-प्रतिशत क्रियान्वयन सुनिश्चित कर फिर उनका सतत अनुवरण एवं अनुरक्षण करना अनिवार्य  होगा।  


        

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