Sunday, December 21, 2014

धर्मान्तरण : समस्या और निदान

     लोभ देकर, छल करके एवं बलपूर्वक धर्मांतरण  (धर्म परिवर्तन/ धर्म परावर्तन) भारतवर्ष में विधि-विरुद्ध है। स्वतंत्र भारत में धर्मांतरण से उपजा विवाद सदैव ही वैमनस्यता को उत्पन्न करने वाला, समाज और देश के लिये घातक तथा विकास के लिये बाधक रहा है।
     बहुधा प्रभावित व्यक्ति, धर्मांतरण क्रियाओं में संलग्न व्यक्तियों या संगठनों द्वारा धर्मांतरण के पश्चात् आरोप-प्रत्यारोप करते देखा जाना आम बात होने लगी है।
     भारतीय क़ानून वर्तमान में धर्मान्तरण को प्रतिबंधित नहीं करता है, अपितु उसके लिये कुछ मापदंड तथा दशायें निर्धारित करता है। इन्हीं मापदंडो तथा दशाओं को जब कसौटी पर परखने की बारी आती है, समस्यायें और विरोधाभास जन्म लेने लगता है, परस्पर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो जाता है और विवाद सामने आने लगते हैं।
     समस्या का स्थायी निदान निम्न प्रकार से संभव दिखायी देता है :
* केंद्रीय क़ानून बनाकर धर्मांतरण को निषिद्ध कर दिया जाये। (इसकी संभावना क्षीण दिखायी देती है।)
 अथवा 
* धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को जिला जज सरीखे जनपद स्तर के न्यायिक अधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित करबाकर परीक्षण किया जाये कि वह देश के क़ानून के तहत अपने वर्तमान धर्म को परिवर्तित करके अमुक धर्म में धर्मांतरित होना चाहता है, अतः उसे अनुमति प्रदान की जाये। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया पारदर्शी होने के साथ-साथ एक अत्यंत छोटी समयावधि के भीतर सम्पन्न होनी चाहिये। एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन का एक अनिवार्य समयावधि अंतराल भी निर्धारित किया जा सकता है।
21.12.2014 (Sunday)

Wednesday, December 17, 2014

पिशाच बने आतंकबादी !


     16 दिसम्बर, 2014  वैश्विक इतिहास में वह काला दिन बन गया है जब नर-पिशाच "तहरीके-ए-तालिवान पाकिस्तान" ने पेशावर पाकिस्तान के एक स्कूल में इंसानियत को कुचल डाला और बेगुनाह, मासूम, हँसते-खेलते फूल जैसे 132 बच्चों एवं 10 स्कूल-स्टाफ कर्मियों का बेरहमी से कत्लेआम कर डाला। पूरी दुनिया में मानवता का दिल कराह उठा है।  इंसानियत हतप्रभ और शब्द-विहीन होकर रह गयी है। दहशतगर्दों के इस कायरतापूर्ण, बर्बर और वहशियाना नीचकर्म की निंदा करने के लिये शब्दकोष में मौज़ूद शब्द नाकाफ़ी हैं। 
     आतंकबाद के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष में पूरी दुनिया को ईमानदारी से संगठित होना पड़ेगा। पाकिस्तान आख़िर भारत के ही जिस्म का एक हिस्सा है, आज हर भारतवासी का ग़म में डूबा होना स्वाभाविक है। पाकिस्तानी हुक़ूमत और पाकिस्तानी सेना जितनी जल्दी हो, ख़ुदा के वास्ते, ये समझ जाये कि अपनी छत के नीचे किसी भी तरीक़े की दहशतगर्दी को पालने-पोषने का अंजाम कितना भयावाह और दर्दनाक होता है, तभी तो आज भी 'हाफ़िज़ सईद' जैसा सिरफिरा और खुदगर्ज आतंकवादी इस दर्दनाक, असहनीय हादसे का कुसूरवार भारत को बताने का दुस्साहस कर रहा है, और भारत पर हमला करने की धमकी दे रहा है। 
17.12.2014

Friday, December 5, 2014

संसदीय प्राथमिकता

जम्मू-कश्मीर राज्य में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी आक्रमण में भारतीय सेना और पुलिस के वीर जवानों ने आज अपने प्राणों का बलिदान दिया है। पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुके पाकिस्तान के इस दोगलेपन और कायरतापूर्ण हरकतों से सम्पूर्ण देशवासी ग़ुस्से में हैं और स्तब्ध हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य के भारी मतदान से पाकिस्तान बौखला गया है।
विपक्ष केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति के द्वारा माफ़ी माँग लिये जाने के बाबजूद उनके दिये वक्तव्य को ढाल बनाकर कई दिनों से संसद की कार्यवाही ठप किये हुये है। प्रधानमंत्री जी भी इस मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में वक्तव्य दे चुके हैं।
यह अपेक्षाकृत गौड़ मुद्दा है।
आज़ के आतंकी आक्रमण के मद्देनज़र संसद में चर्चा होना बेहद आवश्यक है। विपक्ष के माननीय नेतागणों से यह विनम्र निवेदन है कि संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलवाकर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी आक्रमण के बारे में गंभीर चिंतन एवं मंत्रणा करें। आज देश की यही माँग है। 
05.12.2014

Sunday, November 30, 2014

वाह रे काली कमाई का चस्का !

     पिछले कुछ वर्षों से यूपी की सत्ता पर बारी-बारी से क़ाबिज़ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजबादी पार्टी (सपा) में गज़ब की "राजनैतिक दुश्मनी" आये-दिन जनता को दिखायी पड़ती है, लेकिन 'नोएडा अथॉरिटी', 'ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी' और 'यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी' एक साथ तीनों के सत्तासीन कर दिये गये पूर्व चीफ इंजीनियर, करप्शन किंग, अरबों-खरबों के मालिक (अभी तक के छापों के मुताबिक), यादव सिंह (नौकरी की शुरुआत जूनियर इंजीनियर के रूप में, एक दलित अधिकारी) ने काली कमाई का ऐसा अचूक मन्त्र दिया कि सपा बसपा दोनों ने यादव सिंह को तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ चढ़ाने में अभूतपूर्व सामंजस्य दिखाया, और परस्पर योगदान दिया। वाह रे काली कमाई का चस्का ! 
     क्या देश का क़ानून देश के अंदर बैठे गिरोह के सारे चोरों को सज़ा देने में इस बार क़ामयाब हो पायेगा ?
     क्या इन "बड़े-बड़ों" के द्वारा लूटा गया काला-धन देश के ख़ज़ाने में वापस आ पायेगा ?
     या फ़िर इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर हमेशा की तरह.……… ?
30.11.2014 (Sunday)
     

Monday, November 24, 2014

बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होये.......

     मेधा (Intellect) योग्यता और क्षमता का दर्पण होती है, और वही उन्नति के परिणाम देने में सक्षम होती है। लेकिन जब जाति, मज़हब, परिवारबाद ही पैमाने बना दिये जाएं, तो फिर विकास और जन-कल्याण की अपेक्षायें करना या तो मुंगेरी लाल के हसीन सपनें देखने जैसा होता है या फिर सोची-समझी रणनीति के तहत दिखाबा (Posturing) करना होता है।
     आजकल समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख माननीय श्री मुलायम सिंह यादव उ० प्र० में अपने ही पुत्र अखिलेश यादव की सरकार पर आये-दिन तंज कसते दिखायी देते हैं, नाक़ामयाबियाँ गिनाते रहते हैं, विकास का ककहरा सिखाते दिखायी देते हैं। लोकसभा के 2014 के चुनाव-परिणामों के बाद दबी ज़ुबान से ही सही, लेकिन बहुधा "मोदी अलर्ट" भी जारी करते रहते हैं। आगामी 2017 के उ० प्र० विधान-सभा चुनाव परिणामों की हक़ीक़त की आहट उन्हें डराती रहती है।
     मान्यवर, जब 'परिवारबाद', 'जातिवाद' और 'संप्रदायबाद' के पैमानों पर "ओहदे" सजाये जाते हों, तब भ्रष्टाचारी, ग़रीबी, गुंडागर्दी के ही फल आम-जनता को मज़बूरन खाने पड़ते हैं। यथार्थ में यदि सकारात्मक 'फल' की चाहत होती, तो 'कर्म' भी उसी के अनुकूल किया गया होता।
फिर...... 
*उ० प्र० पुलिस में भर्ती और तैनाती जाति को देखकर नहीं होतीं;
*मंत्री, सांसद, विधायक आदि परिवार, जाति और मज़हब के आधार पर तय नहीं होते;
*गुंडई को सुविधानुसार फलने-फूलने न दिया जाता और उस पर कभी-कभार की होने वाली कार्यवाही भी जाति  और धर्म देखकर नहीं होती;
*लोहिया जी के 'समाजबाद' को फिर हक़ीक़त में संजीदगी से जिया जाता, आये-दिन उसका जनाज़ा न निकाला जाता, आदि-आदि।
 

Tuesday, October 21, 2014

"मिलावट" मुक्त भारत आख़िर कब ?

     आज दिनाँक 21.10.2014 मंगलवार 17:15 बजे 'जी न्यूज़ टीवी चैनल' पर दीपावली पर्व के मद्देनज़र खाद्य-पदार्थों, मिठाईयों आदि में मिलावट पर एक सालाना रबायती चर्चा हो रही थी। एंकर के अतिरिक्त चार 'पैनलिस्ट' और भी मौज़ूद थे। वर्तमान सरकार के पक्ष को रखने वाले प्रवक्ता महोदय 2011 में आये नये क़ानून के अन्तर्गत लाइसेंस रजिस्ट्रेशन, पैकेजिंग, लोक जन-जागरण, सेल्फ रेगुलेशन, लैब टेस्टिंग आदि आदि नये और अधिक प्रभावी सरकारी कदमों के बारे में बता रहे थे। मिलावट के मामलों के लिये स्पेशल कोर्ट्स स्थापना की भी बात बतायी गयी। पिछली कांग्रेस लेड यूपीए सरकार की ओर से प्रवक्ता महोदय ने अपनी अकर्मण्यताओं को स्वीकारा भी, और अधिक कड़े क़ानून बनाने में ताली बजाने की भी गारंटी दी। 
     आख़िर इस प्रकार के सालाना रस्मी कार्यक्रमों में कोई भी पक्ष ज़मीनी हक़ीक़त को दो-चार वाक्यों में ही क्यों नहीं बयान करता कि मिलावट के विरुद्ध बनाये गये यह क़ानून और सरकारी क़दम भारत में कभी भी न तो प्रभावी ढंग से कामयाव हुये हैं और न होंगे, जब तक कि :
 *मिलावटी वस्तुओं की प्रभावी छापेमारी;
 *पारदर्शी और ईमानदार 'सैंपलिंग', 'टेस्टिंग';
 *जाति-बिरादरी आधारित भेदभाव रहित, ईमानदारी से एफआईआर दर्जगी नहीं होगी; और
 *अदालती कार्यवाही में रिश्वतखोरी, लेटलतीफी और भ्रष्टाचार अपनी जड़े जमाये रहेगा। 
     केवल क़ानून बना देने मात्र से बुराइयाँ कभी नहीं मिटेंगी, जब तक कि सख़्ती और ईमानदारी से क़ानून का क्रियान्यवयन और उसका अनुश्रवण (Monitoring of the execution of law) नहीं होगा।

Tuesday, September 30, 2014

अभूतपूर्व विलाप !








देश के ग़ददार, भ्रष्टाचारी, लुटेरे ज़रा सी भी आफ़त आन पड़ने पर अपनी-अपनी लूट खसोट को महफूज़ रखने के लिये मिल जुलकर कैसा रोबा-पिटाई और विलाप करते हैं, इसका ताज़ातरीन उदाहरण तमिलनाडू है। मंत्रियों से लेकर उनके "सहयोगी" तक कैसा अभूतपूर्व विलाप कर रहे हैं। यूँ तो ऐसे उदाहरणों की देश में कमी नहीं है। यूपी तो शायद सबसे आगे निकलेगा, ज़रा भ्रष्टाचारियों की गर्दन तो क़ानून की गिरफ़्त में आने दीजिये।