पुलिस, धन कमाने के लालच में मनचाही पोस्टिंग करवाने के लिए राजनेताओं के तलवे चाटती है। खद्दरधारी नेताओं के पाप खाकीबर्दी के अंदर दफ़न करने के लिये पुख़्ता गठजोड़ों को अन्जाम दिया जाता है।
मलाईदार कमाई के थानों में पोस्टिंग के लिए लाखों-करोड़ों की बोलियां लगाई जाती हैं। इन थानों के द्वारा की गयी कमाई नीचे से ऊपर तक बटती है।
मार्केट्स के बरामदों, फुटपाथों और सड़कों पर दुकानदारों का अतिक्रमण पुलिस की इजाजत से होता है जहां से हजारों-लाखों रुपए की रोज उगाही की जाती है।
आपराधिक क़ानूनी प्रावधानों और अदालती निर्णयों के सर्वथा विपरीत एफआईआर दर्ज़गी से लेकर, पुलिस तफ़्तीश और आरोप-पत्र के दाखिले तक का सफर भारतीय क़ानून की कमर तोड़ के रख देता है, और मज़ाल कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पुलिसिया ज़्यादतियों पर नकेल कस सके। भारत में पीड़ित आम इंसान के द्वारा एफआईआर दर्ज़ करवाना एक बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। पुलिस आरोपी का कद, घूस की रक़म और मामले में सिफारिशों के वजन का अनुमान लगाकर ही एफआईआर दर्ज करती है या मना कर देती है, तेल लेने गयीं अदालती नजीरें और कानूनी प्रावधान !
हमाम में सब के सब नंगे है।
मरने को मजबूर है आम इंसान 😢
**अनेश कुमार अग्रवाल, एडवोकेट
** 09/07/2020
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