*सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया के आंतरिक प्रशासन जैसे 'रॉस्टर' बनाने, बेंचों द्वारा अमुक मामलों की सुनवाई निर्धारित करने आदि के मुद्दों में उपजी आपत्ति जजों द्वारा प्रेस-कांफ्रेंस करके जनता में उछालना क्या ठीक प्रक्रिया है?
उत्तर होगा "कदापि नहीं"। क्योंकि यह न्यायालय की प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंचाने और न्यायिक अवमानना की कार्यवाही है।
*अदालती मामलों में फ़ैसले, केसों की मेरिट के बजाय क्या इस बात पर निर्भर करने लगे हैं कि कौन से जज या बेंच द्वारा सुनवाई करने से किस प्रकार का 'जजमेंट' प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर होगा कि "यदि ऐसा है तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और घोर अन्यायपूर्ण स्थिति है।"
*कांग्रेस, वामपंथी जैसी भारत की राजनैतिक पार्टियों ने 2019 के पार्लियामेंट चुनाव की तैयारी "सुप्रीम कोर्ट के चार माननीय जजों की भयानक भूल" के जरिए बयानबाज़ी करके अपना उल्लू साध लेना और संदेहास्पद 'मिस-टाइम्ड' मुलाक़ात करके शुरू कर दी है?
उत्तर है कि देश और उसकी स्वतंत्र न्यायपालिका के भले के लिये कृपया इस 'आंतरिक' विवाद से दूर रहें, देश आभारी रहेगा। हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका में अपनी आंतरिक कठिनाइयों को निबटाने की भरपूर क्षमता है।
भारतीय न्याय व्यवस्था में 12 जनवरी 2018 (शुक्रवार) का दिन क्या फिर से एक बार काला-दिन सिद्ध होगा? कुछेक बार पहले भी धब्बे लग चुके हैं जैसे सुप्रीम कोर्ट को रात में 2–2½
बजे खुलवाकर सुनवाई करके गलत नज़ीर पेश कर देना, आदि आदि! भारतीय आम जनमानस की आख़री उम्मीद न्यायालय ही होता है।
** अनेश कुमार अग्रवाल
** 12/01/2018
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