Tuesday, September 30, 2014

अभूतपूर्व विलाप !








देश के ग़ददार, भ्रष्टाचारी, लुटेरे ज़रा सी भी आफ़त आन पड़ने पर अपनी-अपनी लूट खसोट को महफूज़ रखने के लिये मिल जुलकर कैसा रोबा-पिटाई और विलाप करते हैं, इसका ताज़ातरीन उदाहरण तमिलनाडू है। मंत्रियों से लेकर उनके "सहयोगी" तक कैसा अभूतपूर्व विलाप कर रहे हैं। यूँ तो ऐसे उदाहरणों की देश में कमी नहीं है। यूपी तो शायद सबसे आगे निकलेगा, ज़रा भ्रष्टाचारियों की गर्दन तो क़ानून की गिरफ़्त में आने दीजिये। 

Monday, September 22, 2014

विनम्र आग्रह माननीय उद्धव जी ठाकरे से !

     हठ और हालात में से राजनीति में हालात को चुनना सदैव श्रेयस्कर माना गया है, अन्यथा भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंक विकास स्थापना की बात दूर की कौड़ी लगने लगती है। हाल के लोकसभा चुनाव में बिहार का उदाहारण हम सबके सामने है। 
     परम आदरणीय बालासाहब जी ठाकरे की अब स्मृतियाँ ही शेष हैं, न कि उनका सजीव सशरीर मार्गदर्शन, और इधर मोदी जी जैसे विराट व्यक्तित्व का प्रमाणिक अभ्युदय !
     आप जैसे श्रेष्ठ बुद्धिजन के लिये वास्तविकता की अनुभूति कदाचित सरल होना चाहिये। भाजपा-शिवसेना के 25 वर्ष पुराने पावन गठबंधन को बचा लीजिये। 
*** निवेदक 
अनेश कुमार अग्रवाल
22.09.2014

Monday, September 15, 2014

जलप्रलय की विभीषिकायें !

  
गत वर्ष (2013) उत्तराखण्ड और इस वर्ष (2014) जम्मू काश्मीर राज्य में भयंकर बाढ़ और वर्षा से जो भारी तवाही हुयी है, उसमें मौसम के मिज़ाज में आ रहे बदलाव की आहट तो सुनायी पड़ ही रही है, लेकिन राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की आपराधिक संलिप्तता, अकर्मण्यता और कर्तव्यहीनता भी तवाही के मुख्य कारणों में से हैं।
कुछ  मुख्य  कारण :
 1. शहरों एवं आवादी वाले इलाकों के "ड्रेनेज सिस्टम"  को निर्बाध (Clear) नहीं रखा गया है, फलस्वरूप अतिवृष्टि से उपजे पानी की निकासी नहीं हो पायी।
 2. नदियों, झीलों के किनारों का अतिक्रमण करके उनको संकुचित करके बेतरतीब, अन्धाधुंद, पर्यावरणविरुद्ध, ग़ैरक़ानूनी निर्माण होने दिया गया।
 3. पर्याप्त वृक्षारोपण न किया जाना एवं बृक्षों की अन्धाधुंद कटाई सरकारी संलिप्तता के कारण निर्बाध जारी है।
 4. जल संचयन की व्यवस्थाओं की अनदेखी, पोखरों और तालाबों का विलुप्तीकरण समस्याओं की भयावहता को बढ़ा रहा है।
समस्या के निदान के कुछ पहलू  :
 1. समस्याओं के जो कारण वर्णित किये गये हैं, जब तक क़ानून तोड़ने वालों और शिथिलताओं के जिम्मेदारों को चिन्हित कर उनको कठोर दण्ड नहीं दिया जायेगा, देश से इस प्रकार की समस्याओं का स्थाई उपचार सम्भव नहीं हो पायेगा।
 2. संभावित खतरों एवं समस्याओं का पूर्वानुमान करके, बेहतर आपातकाल प्रबंधन के साथ, समाधान परक नवीन परियोजनाओं का निर्माण कर एवं उनका शत-प्रतिशत क्रियान्वयन सुनिश्चित कर फिर उनका सतत अनुवरण एवं अनुरक्षण करना अनिवार्य  होगा।  


        

Sunday, July 27, 2014

एक पटकनी और.…!

     उत्तर-प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 2014 चुनाव में एक भी मुस्लिम सांसद लोकसभा में नहीं पहुँचा। मुसलमानों का हमेशा वोट ठगने की जुगत में, अपने आपको मुसलमानों का सबसे बड़ा 'मसीहा' होने का दिखावा करने बाली "समाजबादी पार्टी" से उम्मीद लगायी जा रही थी, कि 'मैनपुरी लोकसभा उप-चुनाव' में वह किसी मुस्लिम प्रत्याशी को उतारेगी। यहाँ एक बार फिर, "सपा सुप्रीमो" के परिवारबादी मोह ने आखिरकार लोहिया जी के समाजबाद को पटकनी दे मारी, और "सपा सुप्रीमो" के परिवार के दर्जनभर विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद आदि-आदि बन जाने के बाद भी उनके वंशबाद की भूख शांत नहीं हुई, और अब उनके प्रपौत्र (भतीजे के पुत्र) तेज प्रताप यादव मैनपुरी से लोकसभा उप-चुनाव प्रत्याशी के रूप में अवतरित कर दिये गये !
     मुसलमानों का सबसे बड़ा 'मसीहा' होने का झूठा दिखावा करने के साथ ही उनको हक़ो से वंचित भी रखने के अलावा, एक यक्ष प्रश्न यहाँ और भी उभरता है, कि श्री मुलायम सिंह यादव के परिवार के अतिरिक्त किसी "अन्य यादव परिवार" में क्या ऐसा कोई भी सक्षम, योग्य, मनीषी, जन-सेवक व्यक्ति नहीं है जो मैनपुरी से लोकसभा उम्मीदवार बनने के 'लायक' होता ?
     यूँ  तो समस्त उत्तर-प्रदेश निवासी, लेकिन विशेषकर मुस्लिम और यादव भाई-बहन, वर्षों से चले आ रहे झूठे समाजबाद (Pseudo Secularism) का चोला उढ़ाये "सपा सुप्रीमो" के परिवारबाद के चरम पर गहनता से विचार करें, और फिर फ़ैसला लें, कि आख़िर कब तक सामाजिक, जातिगत, मज़हबी भेदभाव की फसलें उगा-उगाकर अपने परिवार-जनों का "कैरियर" बनाया जाता रहेगा, और दौलत का साम्राज्य खड़ा किया जाता रहेगा ? कुःशासन की बानगी के तौर पर, नारी सुरक्षा को तार-तार कर देने के अलावा, तीन वर्षों के 'सपाई शासनकाल' में हुये लगभग 150 दंगों की तपिश तो उत्तर-प्रदेश की निर्दोष जनता ने ही झेली है, और झेल रही है, "सपा सुप्रीमो" का परिवार तो 'सरकारी सुरक्षा' में महफ़ूज़ रहकर 'माल' समेटने में लगा है। रही बात, चहुँ ओर विश्व में बह रही इक्कीसवीं-सदी के विकास की बयार की, तो कोसों दूर है अपना अभागा 'उत्तर-प्रदेश', इन जैसे 'शासकों' के चंगुल में।


Wednesday, July 16, 2014

पत्रकारिता की भी मर्यादायें हैं !


     साक्षात्कार लेने या देने के नाम पर एक पत्रकार या स्तम्भकार बन्धु की सीमायें वहाँ तक कदापि नहीं बढ़ जातीं, कि वह राष्ट्र-नीति एवं विदेश नीति का स्वयं अपने अनुसार निर्धारण एवं व्याख्या करने लगे और यहाँ तक कि अपने विदेश-प्रवास में उसको प्रचारित-प्रसारित करने लग जाये। वरिष्ठ भारतीय पत्रकार/ स्तम्भकार डॉ वेद प्रताप वैदिक जैसे किसी भी भारतीय पत्रकार या स्तम्भकार बंधु को यह बात शीघ्रतातिशीघ्र भली-भाँति समझ लेना राष्ट्रहित में होगा।
     मर्यादाओं का उल्लंघन भारतीय क़ानून के कड़े प्रावधानों की कसौटी पर कसा जाना चाहिये।