Monday, April 14, 2014

कैसी हो अबकी सरकार ?


भारतीय लोकतंत्र की दरकार । 
अबकी बार भाजपा  सरकार ।।

          तरक्क़ी-अमन-चैन की हो बयार।
          अबकी   बार    मोदी    सरकार ।।

सोनिया, शहजादा 'रेस' से बाहर।
अबकी   बार   मोदी   सरकार  ।।

          बोटी-बोटी करने बाले कांग्रेसीयों को धिक्कार। 
          अबकी         बार         मोदी        सरकार     ।।

घोटालों बाली हटाओ 'पप्पू' सरकार। 
अबकी    बार     मोदी    सरकार   ।।

          बसपा ने लूटे, यूपी के भण्डार ।
          अबकी  बार  मोदी  सरकार  ।।

देश के हर बाशिंदे से हो सरोकार। 
अबकी   बार   मोदी   सरकार  ।।

          स्याही मिटाकर न हो वोट बारम्बार। 
          अबकी     बार     मोदी    सरकार  ।।

"रेपिस्ट" समर्थकों की 'सपा' में भरमार। 
अबकी       बार      मोदी      सरकार   ।।

          देशद्रोही आज़म हो दर-किनार।
          अबकी   बार  मोदी   सरकार ।।

मानवता के 'गीता' 'क़ुरान' आधार। 
अबकी    बार    मोदी    सरकार  ।।

          मीठी यादों बाली अटल सरकार ।
          अबकी   बार  भाजपा  सरकार ।।

"""""निवेदक******* अनेश कुमार अग्रवाल    

Friday, April 11, 2014

"बेचारे" रेपिस्ट !

     उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में 10 अप्रैल 2014 को एक चुनावी रैली में 'ऐंटी रेप बिल' की चर्चा के दौरान समाजबादी पार्टी सुप्रीमो माननीय श्री मुलायम सिंह यादव ने आजकल देश में चल रही नारी सुरक्षा की बहस को बहुत तगड़ी चोट पहुँचाते हुये कहा है कि "बेचारे" रेपिस्टों को फांसी देना ग़लत है। इससे संदर्भित केवल दो प्रश्न देशवासी उनसे पूँछना चाहते हैं :-
(1)  कहीं ऐसा तो नहीं कि "बेचारे" ये रेपिस्ट अमूमन सपा समर्थक होते हों, इसलिये उन्होंने इनका बचाव किया है ?
(2)  माननीय न्यायालय बलात्कार के 'दुर्लभ से दुर्लभतम' (Rarest of the Rare) मामलों में ही फांसी की सज़ा देते हैं, फिर माननीय न्यायालयों के फैसलों पर प्रश्न-चिन्ह लगाकर न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना तथा न्यायलय की अवमानना करना आख़िर क्यों और कब तक ?

Wednesday, April 9, 2014

मातहत बेईमान, मुखिया ईमानदार ?

         एक मशहूर क़िस्सा सत्य घटना पर आधारित है, कि एक दिखाबटी समाज सेवक और राजनेता अपने करीबियों को अपने अकूत काले धन को सफ़ेद करने का नायाव तरीक़ा बताते हुये कहता है कि जनता के बीच जाकर अमुक जन-कार्य के लिये चंदा इकठ्ठा करो। उसके सिपहसलार यह कहते हुए असहमति जताते हैं कि आप जैसे कद्दाबर नेता और धनवान को आख़िर छोटे-मोटे चंदे की क्या ज़रूरत है? ये छद्म समाजसेवी नेता समझाते हुये कहता है, कि वह जानता है कि 5, 10, 50, 100 रुपये देने वालों के चंदे से उसका कोई भला होने वाला नहीं है, लेकिन चंदे में मिली इस छोटी रक़म को जब वह अपनी अकूत काली कमाई में मिला देगा, तो उसकी सारी रक़म "सफ़ेद" हो जायेगी।
     सुरसा के मुँह की तरह बढ़ी बसपा सुप्रीमो की दौलत भी शायद इसी प्रयोग का नतीज़ा है जो एक चुनाव से दूसरे चुनाव में दाख़िल हलफनामों में उनकी बेतहाशा बढ़ी धन सम्बन्धी घोषणाओं की तस्दीक़ करता है। सत्ता में रहते हुये उनके जन्म-दिन पर 'धन उगाही' से कौन नहीं वाक़िफ़ है? उनके सगे छोटे भाई की उनके शाशनकाल में अवतरित हुयीं दर्जनों कम्पनियाँ अक्सर चर्चा में रहतीं हैं। उन्होंने जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपयों की बर्बादी करके जीते-जी अपनी मूर्तियाँ लगवा दीं, बड़े-बड़े स्मारक बनबा दिये, लेकिन दलित भाई-बहनों का वोट ठगने के बाबजूद भी उनके लिये दिल्ली के 'एम्स' जैसा एक अदद अस्पताल यू०पी० में वह नहीं बनबा पायीं, जहाँ दलित भाई-बहनों का जीवन-भर मुफ्त इलाज़ सम्भव हो पाता।  
     सर्वविदित है कि सत्ता में रहते हुये उनका मातहत मंत्री या 'ब्यूरोक्रेट' उनके संज्ञान के बिना एक भी "कार्य" या कोई "आर्थिक निर्णय" नहीं ले सकता था। ऐसे में 'एन०आर०एच०एम०' घोटाले में तत्कालीन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की अरबों-खरबों की काली कमाई पर न्यायिक तलवार लटक रही है, तो फिर तत्कालीन "मुखिया" की "ईमानदारी" को न्यायिक जाँच की कसौटी पर क्यों नहीं परखा जाता है। आख़िर, काले कारनामें हुये तो उन्हीं की सरपरस्ती में हैं। बसपा सुप्रीमो के शाशनकाल में दो सी०एम०ओ०, एक डिप्टी सी०एम०ओ० और एक इंजीनियर श्री गुप्ता की रहस्यमयी मौतों से उक्त सन्देह और घने हो जाते हैं।
     निष्कर्ष-विहीन जाँचें रह-रहकर होती रहती हैं, न्यायिक प्रक्रियायें अपना काम करती रहती हैं। प्रिय देशवासियों, लोकसभा के आम-चुनाव सामने हैं, अब जनता को अपने वोट की ताक़त के जरिये अपना काम करना है।          

Tuesday, April 8, 2014

जब मुज़फ्फ़रनगर जल रहा था ..........।

     मुज़फ्फ़रनगर दंगों की भेंट चढ़ चुके दर्जनों निर्दोष परिवारों ने अपने प्रियजनों की केवल जान ही नहीं गवायीं, बल्कि अपना सब कुछ उजड़ते भी अपनी आँखों के सामने देखा। आखिर, दंगों का इस दर्ज़ा फैलाव कांग्रेस नेतृत्व बाली केन्द्र और सपा नेतृत्व की उत्तर-प्रदेश की सरकारों की सिर्फ़ बिफलता का ही परिणाम नहीं था, एक गम्भीर राजनीतिक साज़िश भी थी, जिससे चुनावी फायदा हासिल किया जा सके। बाद में तो घड़ियाली आँसू बहाने की सियासी रवायत आजकल सब देख ही रहे हैं।
     जब मुज़फ्फरनगर जल रहा था, ठीक उसी समय सपा सुप्रीमों के गृह ग्राम "सैफई" में आम-जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ो रुपये लुटाकर फ़िल्मी ठुमके लगवाये जा रहे थे, ऐसा समाजबाद देखकर आदरणीय लोहिया जी भी जीवित रहना शायद पसंद नहीं करते। मुज़फ्फ़रनगर के भुक्तभोगी एक बाशिंदे के दिल की आह कितनी सटीक है -
     *** तुम सँवरकर सजन "सैफई" बन गये, हम उजड़कर मुज़फ्फ़रनगर हो गये। ***  
     प्रिये देशवासियों, आपके बहुमूल्य वोट की ताक़त अब आपके पास है, और मौक़ा भी है।

'बदला लेने' का अभिप्राय !

          गत् सप्ताह यू० पी० बीजेपी इकाई के इन्चार्ज श्री अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनसभाओं में आम जनता से बदला लेने की बात कही है। कहीं ऐसा तो नहीं है, कि श्री शाह के इस बयान पर उन पार्टियों और लोगों ने हाय-तौबा मचा रखी हो, जिनके दिलों में मुज़फ्फरनगर के हालिया दंगो की भागेदारी का पाप छुपा है ?
          जग जाहिर है कि चुनावों में आम जनता के पास बदला लेने का एक मात्र और सबसे प्रभावी हथियार उन लोगों और उन राजनीतिक पार्टियों के ख़िलाफ़ वोट करने का होता है, जो अव्यवस्थाओं, दंगों, भ्रष्टाचारी और जान-माल के नुकसान के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। 
          श्री अमित शाह ने 'बदला लेने' बाली ऐसी ही अपील आम जनता से की है, इसमें असंवैधानिक या ग़ैर-क़ानूनी क्या है ?