Monday, May 19, 2014

चुनावी हार पर आत्मचिंतन के वजाय धमकी !

     लोकसभा आम चुनाव 2014 में अपेक्षित परिणाम न मिलने पर राजनैतिक पार्टियाँ आत्ममंथन या आत्मचिंतन करने के वजाय दुर्भाग्य से धमकी भरा परमंथन करने पर जुटी हैं, और कोशिश में हैं कि हार का ठीकरा कैसे भी दूसरों के सर फोड़ा जाये।
     एक खबर के अनुसार बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने एक 'प्रेस-कॉन्फ्रेंस' में धमकी भरे लहज़े में कहा है कि :
     "मुसलमान अपने फ़ैसले पर पछताएँगे।"
     "…दलित अब भी हमारी पार्टी से जुड़े हुये हैं, लेकिन मुसलमान बहकावे में आ गये। मुसलमान हमेशा ग़लत क़दम उठाते हैं, और पछताते हैं…।"  
     सुश्री मायावती, मुस्लिम और दलित भाई-बहनों को क्या अपना ज़रख़रीद ग़ुलाम समझती हैं? ताज़ कॉरिडोर, स्मारक, मूर्ति, स्वास्थ्य विभाग (NRHM), यूपी चीनी मिलों के विक्रय, आदि आदि में अरबों-खरबों के वह चाहे कितने भी घपले-घोटाले करती चली जायें, सांसद विधायकी की "टिकट विक्री" करती रहें, आय से अधिक संपत्ति इकठ्ठा कर लें, उनके मन्तव्य में उनका "बंधुआ वोट बैंक" चुपचाप उनको वोट देकर सत्तासीन करता रहे, और वह स्पष्टतया सामन्तबादी शैली में अपने सगे छोटे भाई की करोड़ों-अरबों की दर्जनों कम्पनियों के माध्यम से अपना 'बेनामी' साम्राज्य स्थापित करती रहें, क्या ऐसे ही होगा दलित कल्याण? क्या इसी तरह मुस्लिम भाई-बहनों को देश की विकास-धारा में उनका हक़ मिल सकेगा?
     अरे ! आपके पास जाति आधारित वैमनस्यता और धर्म के आधार पर बँटवारे के सिवाय आम जनमानस के लिये क्या कभी कोई विकास का एजेंडा रहा है? हाँ, ख़ुद का अरबों-खरबों का विकास आपने ज़रूर कर लिया, बेचारा दलित, मुस्लिम समाज़ एवं अन्य ग़रीब तबका तो वहीं का वहीं रहा। इसलिये 2014 के लोकसभा चुनावों में जनता ने देश की कुछ और भ्रष्ट क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ आपकी पार्टी का भी वज़ूद ही ख़त्म कर दिया, फिर भी आप जैसे लोग गंभीर चिंतन के वज़ाय कभी दलितों को, कभी मुस्लिमों को, कभी किसी और को कुसूरवार ठहराने पर आमादा हैं।
     सुश्री मायावती जी, वैसे भारत का मुस्लिम समाज़ इतना नासमझ नहीं है, जितना आप समझ रहीं हैं। मुस्लिमों का निरादर करने का आपको क्या हक़ है? दरअसल, अब आप जैसों की राजनैतिक दुकानें बंद होने की कगार पर हैं, जहाँ पर केवल मज़हव और जाति की कड़ुवाहट बिकती हो। अब आप लोगों को जाति एवं धर्म से परे सर्वजन-विकास, रोज़गार सृजन, मँहगाई नियंत्रण, भ्रष्टाचार मुक्ति, अपराध मुक्ति, त्वरित विधिक न्यायिक व्यवस्था, महिला सुरक्षा, बेहतर स्वास्थ सुविधाओं का सामान अपनी राजनैतिक दुकानों में सजाना पड़ेगा।  
     मुस्लिम भाई-बहनों को भी किन्हीं अन्य भारतवासियों की तरह तरक़्क़ी और विकास चाहिये, अमन-चैन की ज़िंदगी चाहिये, सरकार चाहे किसी की भी हो। अब इस विचारधारा पर चिंतन होना चाहिये।

Sunday, May 11, 2014

बनारस में चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन की ज्यादती !

     बनारस में मोदी जी की रैलियों को पहले इज़ाज़त नहीं, उद्देश्य बिफल कर देने के उपरांत बाद में इज़ाज़त। भाजपा कार्यालय में ग़ैरक़ानूनी छापा मारकर प्रचार सामग्री जब्त करना, फ़िर लौटा देने की बात करना। आख़िर यह भाजपा के साथ चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन की ज्यादती एवं पक्षपात नहीं तो और क्या है ?

Friday, May 9, 2014

अंतिम चुनावी हथकंडे !

     यदि "गाँधी" शब्द श्रीमान राहुल और श्रीमती प्रियँका के नामों से हटा दिया जाये, तो ढ़ूँढ़ने पर भी भारतवर्ष में उनका कोई राजनैतिक वज़ूद नहीं मिलेगा। अब ऐसे लोग और उनकी कांग्रेस पार्टी श्री नरेन्द्र मोदी जैसे कर्मयोगी, विकास पुरुष, परिणामदायी राजनेता पर जाति का कार्ड खेलने का यदि आरोप लगायें, तो यह कांग्रेस पार्टी और उनके लोगों की चुनावों मे निश्चित हार से उपजी हताशा के सिवाए कुछ भी नहीं है। 2014 के आम चुनावों के नौवें एवम अन्तिम चरण के दौर में पहुँचते-पहुँचते कांग्रेस के पास कहने और प्रदर्शित करने के लिये अब  बचा ही क्या है ?
     ऐसे में श्रीमान राहुल और श्रीमती प्रियँका जब जाति का हथकंडा आज़माने पर आमादा हो ही गये हैं, तो लगे हाथ वह क्या देश को यह बताने का कष्ट करेंगे कि वे किस जाति से आते हैं ? कितना अच्छा होता यदि वह मुद्दोँ पर राजनीतिक वहस करते।

Saturday, May 3, 2014

तैयार रहिये "डी एन ए टेस्ट" के लिये !


     समाजबादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के महाराष्ट्र राज्य के प्रमुख ज़नाब अबु आसिम आज़मी ने यूपी के संत कबीर नगर जिले के खलीलाबाद क़स्बे में 30 अप्रैल 2014 को एक चुनावी जन-सभा को सम्बोधित करते हुये कहा कि :
     "जो मुस्लिम समाजबादी पार्टी (सपा) को वोट नहीं देगा, उसका "डी एन ए टेस्ट" कराना चाहिये।"
     सच्चे मुसलमान की पहचान कलिमा पढ़नें (Ashhadu Alla Ilaha Illa Allah Wa Ashhadu Anna Muhammad Rasulu Allah), इस्लाम मानने, पवित्र क़ुरान शरीफ़ के मुताबिक ज़िन्दगी जीने के बजाय अब इस बात से तय होगी कि सपा सुप्रीमों श्री मुलायम सिंह यादव के पूरे कुनबे में कुछ बचे-खुचों को भी एम०पी०, एम०एल०ए० और मंत्री बनबाने के लिये, उनकी काली करतूतों पर कोई आँच न आने देने के लिये और उनकी काली कमाई को महफ़ूज़ रखने के लिये क्या मुसलमान 'सपा' को वोट और समर्थन दे रहा है या नहीं ? क्यों ज़ाती सियासी फ़ायदे के लिये मुसलमानियत की पवित्रता को ही लोग कठघरे में खड़ा करने पर आमादा हैं ?
     ज़नाब अबु आज़मी साहब पहले भी सपा सुप्रीमो के "रेपिस्ट" बाले विवादास्पद बयान का समर्थन कर चुके हैं।
     दरअसल, सपा ही नहीं बसपा जैसी पार्टीयाँ भी अपनी निश्चित हार को देखकर बौखलाई हुई हैं, क्योंकि कांग्रेस की "सरपरस्ती" उन्हें अब मिलती नहीं दिखायी दे रही है।
     मुस्लिम भाइयों और बहनों, इन सपा, बसपा, कांग्रेस जैसी "राजनैतिक प्राइवेट लिमिटिड कम्पनियोँ" से छुटकारा पाइये, और अपनी तरक़्क़ी की इबारत खुद अपने हाथ से लिखिये। 
     भाजपा को वोट दीजिये। अबकी बार मोदी सरकार। 
***निवेदक ***अनेश कुमार अग्रवाल