Thursday, April 21, 2016

न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की चाहरदीवारी...?

     न्यायिक समीक्षा क्या ऐसे "दरवाज़े" का निर्माण कर सकती है, जिसमें से घुसकर वो क़ानून बनाना (Legislating) शुरू कर दे ? निश्चित रूप से जबाब 'न' में होगा।

     नज़दीकी अतीत गवाह है कि भारत में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) के नाम पर "शक्ति-पृथक्करण के सिद्धांत (Doctrine of Separation of Powers)" के साथ भी छेड़-छाड़ करने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन बाद में शीर्ष न्यायिक संस्थाओं ने ही "आत्म-संयम (Self-Restraint)" के सूत्र का पालन किया एवं करबाया है।

     प्रतिपादित कुछ सिद्धांतों की अवधारणायें "स्वयं की सुविधा (Self suitability)" के अनुसार बदलती नहीं रहनी चाहिये, वरना "पसँघा (Biasness)" झाँकने लगता है। मसलन-

**** "आत्मनिष्ठ संतुष्टि (Subjective Satisfaction)" और "वस्तुनिष्ठ संतुष्टि (Objective Satisfaction)" राज्यों में राष्ट्रपति-शासन के मामलों में महामहिम राष्ट्रपति महोदय की "संतुष्टि" आख़िर किस प्रकार की होगी और उसकी विषय-सामग्री (Content) क्या होगी ? इसकी परिधि निर्धारित होनी चाहिये।

**** उत्तराखंड में लागू 'राष्ट्रपति-शासन' के मामले में माननीय नैनीताल उच्च-न्यायालय की "ग़ैर-जरूरी" टिप्पणियाँ, "Power corrupts; and absolute power corrupts absolutely", "President is not above the law", कहीं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 ( राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों का संरक्षण) का उल्लंघन तो नहीं है ? 

     बोम्मई केस में यह अभिनिर्धारित हुआ था कि "सदन के अंदर बहुमत तय किया जायेगा। महामहिम राष्ट्रपति या राज्यपाल महोदय के यहाँ सदन के सदस्यों की 'परेड' करा देना बहुमत साबित करने का मापदंड नहीं होगा।" लेकिन बोम्मई मामले में यह अभिनिर्धारित नहीं हुआ था, कि यदि किसी राजनैतिक दल का 'नेता' या स्वयं मुख्यमंत्री ही सदस्यों की 'ख़रीद-फ़रोख़्त (Horse Trading)' में संलिप्त पाया जायेगा, तो फिर बोम्मई केस के अनुसार सदन में बहुमत सिद्ध (Floor Test) करने की प्रक्रिया ही दूषित हो जायेगी ? फिर ऐसे में क्या होगा ?

     सरकारें यदि "राष्ट्रपति शासन" (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356) का दुरूपयोग करेंगी, तो आने वाले चुनावों में जनता सबक सिखायेगी, अत्यधिक न्यायिक सक्रियता व तत्परता देश की शीर्ष संस्थाओं में "संतुलन" ख़राब कर देगी।

     न्यायिक फ़ोरम  दशकों से लंबित मुकदमों का 'ढेर' निबटाने में न्यायिक सक्रियता दर्शायें, तो देशहित में होगा। न्यायिक समीक्षा के नाम पर अत्याधिक न्यायिक सक्रियता पिछले दरवाज़े से शासन करने की अभिलाषा मात्र है, जो देश की न्यायिक-व्यवस्था के लिये ख़तरनाक़ है।

     उत्तराखंड में दिनाँक 21.04.2016 को राष्ट्रपति शासन हटाये जाने का फ़ैसला नैनीताल हाईकोर्ट, उत्तराखंड की ऐतिहासिक भूल साबित होगा।
**अनेश कुमार अग्रवाल 
**21.04.2016  

No comments:

Post a Comment