आजकल अपने देश में साहित्य कला से जुड़े लोगों द्वारा पूर्व में उनको मिले 'सम्मानों' को लौटाने की होड़ सी मच गयी है।
यक्ष प्रश्न यह है कि अमुक सम्मान उनको उनकी कला और लेखन की उत्कृष्टता के लिये दिया गया था, या उनकी किसी राजनैतिक या सामाजिक विशेष विचारधारा के लिये ? इसके अतिरिक्त 'सम्मान' प्राप्त करने पर उनका जो मान, प्रतिष्ठागान और महिमामंडन हुआ था, क्या वह उसको लौटा पायेंगे ? अब उनको यदि किसी अमुक राजनैतिक या सामाजिक विचारधारा से संलिप्त होकर अपनी किसी उद्देश्यपूर्ति की भूख को शान्त करना है, तो पूर्व में मिले 'सम्मान' की पीठ पर चढ़कर क्यों सवारी करना चाहते हैं ?
*अनेश कुमार अग्रवाल
14.10.2015
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