**********माननीय जस्टिस मार्कण्डेय काटजू साहब (सेवा निवृत) !
*विभिन्न न्यायालयों में जिस तस्वीर के नीचे बैठकर वर्षों आपने अनेक न्यायिक फ़ैसले सुनाये हैं, उनको राष्ट्र का पिता कहा जाता है, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी। अब भला इंसान का पिता तो होता है, देश का पिता कोई कैसे हो सकता है ?
*धरती को लोग माता कहते हैं, धरती माता। अब भला ज़मीन भी कहीं किसी की माँ हो सकती है ?
*भारत के बहुत से लोग अपने देश को भारत माता कहते हैं। अब बताइए, कोई देश भी कहीं किसी की माँ या बाप हो सकता है ?
*भारत में कभी दूध की नदियाँ बहा करती थीं। भारत कभी सोने की चिड़िया था। ये कैसी "उट-पटांग" बातें लोग करते रहते हैं ?
**********मगर ताज्जुब है, आपने ऐसी "उट-पटांग" बातों के लिये कभी अपना श्रीमुख खोला ही नहीं ! जैसा गाय को माँ बता देने पर आप बिफर पड़े हैं। गाय से इंसान के "बायोलॉजिकल" रिश्ते की आप व्याख्या करने लग गये।
**********माननीय काटजू साहब, क्या आप सदैव शाब्दिक अर्थ (Literal Meaning) के आधार पर ही फ़ैसले करते रहे हैं, क्या आपने कभी सन्दर्भ (Context) देखा ही नहीं ?
**********माननीय काटजू साहब, आपने बेहद सम्मानित पदों पर कार्य-निर्वहन किया है। अपना न सही, कम से कम उन गरिमामयी पदों की मर्यादाओं का मान तो रख लीजिये, या क्षुद्र राजनीति के कीचड़ में उतर कर ही मानेंगे ?
*अनेश कुमार अग्रवाल
06 अक्टूबर, 2015
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