Sunday, September 18, 2016

वोटर कार्ड बनाने का "ड्रामा" !

श्रीमान मुख्य चुनाव आयुक्त नई दिल्ली,
श्रीमान मुख्य निर्वाचन अधिकारी, उत्तर प्रदेश, लखनऊ
श्रीमान जिलाधिकारी, लखनऊ

     आज दिनांक 18 सितंबर 2016 (रविवार) को राजकीय वास्तुकला महाविद्यालय, टैगोर मार्ग, डालीगंज, लखनऊ पोलिंग बूथ पर नए मतदाता पहचान पत्र बनवाने, तथा उनमें सुधार करवाने आदि हेतु जो कैंप लगा है उसमें उपस्थित निर्वाचन से संबंधित कर्मचारीगण :-

1. वांछित फार्म नहीं रखे हुए हैं,
2. अधिकांश क्षेत्रीय जनता के वोटर आई कार्ड उपलब्ध न होने का कारण बताकर मतदाताओं को टरका रहे हैं,
3. 01से 03 वर्ष पूर्व जमा किए गए फॉर्म-6 के वोटर आई कार्ड अभी तक न बन पाने की बात कह रहे हैं,
4. करेक्शन हेतु फॉर्म-8 उपलब्ध नहीं है,
5. दुरुस्त एवं सम्पूर्ण वोटर लिस्ट भी बूथ पर उपलब्ध नहीं है,
6. संबंधित बीएलओ मतदाताओं के घर पर कभी नहीं आते हैं।

     इन उपरोक्त कारणों से नागरिकों के मतदान का संवैधानिक अधिकार छीना जा रहा है। ज्ञातव्य है कि यह वह पोलिंग बूथ है जिस पर अनेकों आयोजनों पर बीएलओ आते ही नहीं है। यदि कोई व्यक्ति कैंप लगने के नाटक में कभी उपलब्ध भी हो जाता है तो वह BLO का प्रॉक्सी मात्र होता है इस कारण मतदान फार्म जमा करने पर रसीद नहीं देता है।

मैं स्वयं भी अपना तथा अपने परिवार का वोटर कार्ड बनवाने के लिए गत लगभग 3 वर्षों से आज़ तक असफल रूप से प्रयासरत हूं। यदि संवैधानिक कार्य निष्पादित करने में आप शीर्ष अधिकारीगण असमर्थ और असफल हैं तो कृपया पद त्याग करके सक्षम व्यक्तियों को आगे आने का अवसर दें, जिससे भारत के नागरिकों के संवैधानिक अधिकार जैसे मतदान करने के अधिकार की रक्षा हो सके।

अनेश कुमार अग्रवाल
18.09.2016
मो0 - 9198884444
E-Mail : anesh25@gmail.com


दि0  18.09.2016 को उक्त पोलिंग बूथ के पाँच फ़ोटोग्राफ़ -
 

Saturday, August 13, 2016

जय अक्षर पुरुषोत्तम ब्रह्म विलीन परम पूज्यनीय प्रमुख स्वामी जी महाराज !

**** जय स्वामी नारायण भगवान् !

**** जय अक्षर पुरुषोत्तम ब्रह्म विलीन परम पूज्यनीय

प्रमुख स्वामी जी महाराज !



     आज (13 अगस्त 2016, शनिवार) पृथ्वी से मानवरूप में विद्यमान ईश्तत्व परम पूज्यनीय प्रमुख स्वामी जी महाराज, अक्षर पुरुषोत्तम ब्रह्म में विलीन हो गये। इस पृथ्वी पर मानव रूप में 94 वर्षों तक सशरीर विद्यमान रहकर श्रेष्ठतम मानवीय सद्गुणों का संचार कर धर्म एवं मानवता की उन्होंने सच्ची सेवा की।
     यद्पि आज की घड़ी हम पृथ्वी वासियों के लिये असीम वेदना दायक है, फिर भी शांत मन और भाव से हम सभी को परम पूज्यनीय प्रमुख स्वामी जी महाराज का स्मरण करते हुये अक्षर पुरुषोत्तम ब्रह्म श्री स्वामी नारायण भगवान् के श्री चरणों में प्रार्थना करना चाहिये। 
     हम सब परम पूज्यनीय प्रमुख स्वामी जी महाराज के चरणों में अपनी विनम्र श्रधांजलि अर्पित करते हैं!
श्रद्धावनत :
अनेश कुमार अग्रवाल
दि० 13.08.2016

Friday, July 22, 2016

"लड़की पेश करो!"

"लड़की पेश करो!"
"लड़की पेश करो!"
     सुश्री मायावती जी की पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और उनके समर्थकों का ये बड़ा पुराना, "तिलक तराजू और तलवार इनके मारो जूते चार" से भी ज़्यादा फायदेमंद "टेस्टेड" राजनैतिक 'बिरासती'  नारा है।
     दशकों पहले एक प्रसिद्ध दलित नेता श्री दीना नाथ भास्कर, जो बसपा के संस्थापक सदस्य एवं माननीय श्री कांशीराम जी के विश्वस्त सहयोगी थे, से किसी मतभेद पर हज़रतगंज लखनऊ में बसपाइयों ने कल ही की तरह बड़ा 'उत्पात' मचाते हुये श्री दीना नाथ भास्कर के विरोध में भी "लड़की पेश करो!" "लड़की पेश करो!" के नारे लगाये थे।
    अब दयाशंकर सिंह की लड़की को पेश करवाकर ये बसपाई उस "निर्दोष" लड़की के सम्मान की क्यों धज्जियाँ उड़ाना चाहते थे? ये कौन सी गुंडागर्दी है, जिस पर प्रशासन मौन है? सख़्त से सख़्त सज़ा दी जानी चाहिये, सड़कपर उतर कर घोर उत्पात करने वाले ऐसे राजनैतिक गुंडों को, उनके समर्थकों को और उन निर्लज्ज सरवराहों को जो राज्यसभा में दयाशंकर की निर्दोष धर्मपत्नी एवं बेटी के सम्मान को तार-तार कर अपने राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की बीमार बेल को सींच रहे थे।
     मृत-शैय्या पर पड़ी, भ्रष्टाचार के लकवे से पीड़ित बसपा को उसके भोले-भाले समर्थकों को उकसाकर "दयाशंकर प्रकरण" को संजीवनी बूटी की तरह सुश्री मायावती इस्तेमाल करने की असफ़ल कोशिश कर रहीं हैं।
***अनेश कुमार अग्रवाल
** 22.07.2016
    

Thursday, July 14, 2016

O Me Lords !

[PRESIDENT RULE IN STATE (Article 356 of the Indian Constitution)]
"Court can only interpret the law and not rewrite or make the law in the name of interpretation."
          Howsoever political topsy-turvy (उथल-पुथल) be in the State even to put the State Government in a situation not able to be carried on in accordance with the provisions of the Constitution, because of Horse Trading of the members of the House even if championed by the Chief Minister visible on T.V. (Uttrakhand) or State Govt. downsized to monority (Tuki Govt.) in an extremely sensitive border State (Arunanchal Pradesh), the Governor are to shut their eyes and ears to such political developments ?
         The answer is in big "NO".
          This is not the spirit of Indian Constitution and intention of the constitution framers.
          Needless to emphasize, the President may invoke Art. 356 on receipt of report from the Governor of a State or "OTHERWISE".
          The guideline of "Floor test" in judicial precedents cannot be interpreted in 'ABSOLUTISM' but in 'RELATIVITY' & 'ENTIRETY OF THE SITUATION' instead.

Thursday, April 21, 2016

न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की चाहरदीवारी...?

     न्यायिक समीक्षा क्या ऐसे "दरवाज़े" का निर्माण कर सकती है, जिसमें से घुसकर वो क़ानून बनाना (Legislating) शुरू कर दे ? निश्चित रूप से जबाब 'न' में होगा।

     नज़दीकी अतीत गवाह है कि भारत में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) के नाम पर "शक्ति-पृथक्करण के सिद्धांत (Doctrine of Separation of Powers)" के साथ भी छेड़-छाड़ करने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन बाद में शीर्ष न्यायिक संस्थाओं ने ही "आत्म-संयम (Self-Restraint)" के सूत्र का पालन किया एवं करबाया है।

     प्रतिपादित कुछ सिद्धांतों की अवधारणायें "स्वयं की सुविधा (Self suitability)" के अनुसार बदलती नहीं रहनी चाहिये, वरना "पसँघा (Biasness)" झाँकने लगता है। मसलन-

**** "आत्मनिष्ठ संतुष्टि (Subjective Satisfaction)" और "वस्तुनिष्ठ संतुष्टि (Objective Satisfaction)" राज्यों में राष्ट्रपति-शासन के मामलों में महामहिम राष्ट्रपति महोदय की "संतुष्टि" आख़िर किस प्रकार की होगी और उसकी विषय-सामग्री (Content) क्या होगी ? इसकी परिधि निर्धारित होनी चाहिये।

**** उत्तराखंड में लागू 'राष्ट्रपति-शासन' के मामले में माननीय नैनीताल उच्च-न्यायालय की "ग़ैर-जरूरी" टिप्पणियाँ, "Power corrupts; and absolute power corrupts absolutely", "President is not above the law", कहीं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 ( राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों का संरक्षण) का उल्लंघन तो नहीं है ? 

     बोम्मई केस में यह अभिनिर्धारित हुआ था कि "सदन के अंदर बहुमत तय किया जायेगा। महामहिम राष्ट्रपति या राज्यपाल महोदय के यहाँ सदन के सदस्यों की 'परेड' करा देना बहुमत साबित करने का मापदंड नहीं होगा।" लेकिन बोम्मई मामले में यह अभिनिर्धारित नहीं हुआ था, कि यदि किसी राजनैतिक दल का 'नेता' या स्वयं मुख्यमंत्री ही सदस्यों की 'ख़रीद-फ़रोख़्त (Horse Trading)' में संलिप्त पाया जायेगा, तो फिर बोम्मई केस के अनुसार सदन में बहुमत सिद्ध (Floor Test) करने की प्रक्रिया ही दूषित हो जायेगी ? फिर ऐसे में क्या होगा ?

     सरकारें यदि "राष्ट्रपति शासन" (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356) का दुरूपयोग करेंगी, तो आने वाले चुनावों में जनता सबक सिखायेगी, अत्यधिक न्यायिक सक्रियता व तत्परता देश की शीर्ष संस्थाओं में "संतुलन" ख़राब कर देगी।

     न्यायिक फ़ोरम  दशकों से लंबित मुकदमों का 'ढेर' निबटाने में न्यायिक सक्रियता दर्शायें, तो देशहित में होगा। न्यायिक समीक्षा के नाम पर अत्याधिक न्यायिक सक्रियता पिछले दरवाज़े से शासन करने की अभिलाषा मात्र है, जो देश की न्यायिक-व्यवस्था के लिये ख़तरनाक़ है।

     उत्तराखंड में दिनाँक 21.04.2016 को राष्ट्रपति शासन हटाये जाने का फ़ैसला नैनीताल हाईकोर्ट, उत्तराखंड की ऐतिहासिक भूल साबित होगा।
**अनेश कुमार अग्रवाल 
**21.04.2016