जम्मू कश्मीर में हाल में संपन्न शांतिपूर्ण चुनावों का श्रेय भारत गणराज्य की सुदृढ़ता, उसके लोकतांत्रिक ढाँचे की मज़बूती, उसके चुनाव आयोग, सेना, अर्धसैनिक बलों और जम्मू कश्मीर के लोगों को जाता है।
भारत की चट्टानी दृढ़ता और उसकी लोकतांत्रिक चुनावी व्यवस्था की हक़ीक़त के आगे पाकिस्तान और अलगावबादी हुर्रियत को आख़िरकार नतमस्तक होना ही पड़ा। अब यदि, जम्मू कश्मीर के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री जनाव मुफ़्ती मोहम्मद सईद साहब पाकिस्तान और अलगावबादी हुर्रियत की इस स्वीकारता को भारतीय चुनावों में उनका योगदान देना कहते हैं, तो यह उनका घटिया विश्लेषण, मानसिक दिवालियापन और सच्चाई से मुँह मोड़ने के अलावा कुछ और नहीं है। रही बात, आतंकी अफ़ज़ल गुरू के अवशेषों को कश्मीर लाने की मांग और फिर उसको महिमा-मंडित करने की बदनीयती, तो यह पीडीपी और लम्पट अय्यरों का भारत राष्ट्र और उसकी न्यायिक व्यवस्था के विरुद्ध देशद्रोह कहा जायेगा, जिसको भारतीय क़ानून की कसौटी पर कसा जाना चहिये।
*अनेश कुमार अग्रवाल
03.03.2015
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