स्वच्छ न्याय के प्रशासन (Fair Administration of Justice) हेतु अब यह अनिवार्य हो गया है कि संसद और न्यायपालिका को यह तय कर देना चाहिये कि एक "दोषी" कितनी बार राष्ट्रपति महोदय और राज्यपाल महोदय के पास दया-याचिका दाखिल कर सकता है। अमुक "दोषी" के द्वारा बार-बार दया-याचिकायें दाख़िल करना और इन संस्थानों के द्वारा विचारार्थ स्वीकार कर लेना क्या विधि-सम्मत है या न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया में उल्लंघन ?
इसके अतिरिक्त लंबित दया-याचिकाओं के निपटारे की समय-सीमा का अभिनिर्धारण भी होना चाहिये।
इसके अतिरिक्त लंबित दया-याचिकाओं के निपटारे की समय-सीमा का अभिनिर्धारण भी होना चाहिये।
*अनेश कुमार अग्रवाल
29.07.2015