Sunday, November 30, 2014

वाह रे काली कमाई का चस्का !

     पिछले कुछ वर्षों से यूपी की सत्ता पर बारी-बारी से क़ाबिज़ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजबादी पार्टी (सपा) में गज़ब की "राजनैतिक दुश्मनी" आये-दिन जनता को दिखायी पड़ती है, लेकिन 'नोएडा अथॉरिटी', 'ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी' और 'यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी' एक साथ तीनों के सत्तासीन कर दिये गये पूर्व चीफ इंजीनियर, करप्शन किंग, अरबों-खरबों के मालिक (अभी तक के छापों के मुताबिक), यादव सिंह (नौकरी की शुरुआत जूनियर इंजीनियर के रूप में, एक दलित अधिकारी) ने काली कमाई का ऐसा अचूक मन्त्र दिया कि सपा बसपा दोनों ने यादव सिंह को तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ चढ़ाने में अभूतपूर्व सामंजस्य दिखाया, और परस्पर योगदान दिया। वाह रे काली कमाई का चस्का ! 
     क्या देश का क़ानून देश के अंदर बैठे गिरोह के सारे चोरों को सज़ा देने में इस बार क़ामयाब हो पायेगा ?
     क्या इन "बड़े-बड़ों" के द्वारा लूटा गया काला-धन देश के ख़ज़ाने में वापस आ पायेगा ?
     या फ़िर इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर हमेशा की तरह.……… ?
30.11.2014 (Sunday)
     

Monday, November 24, 2014

बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होये.......

     मेधा (Intellect) योग्यता और क्षमता का दर्पण होती है, और वही उन्नति के परिणाम देने में सक्षम होती है। लेकिन जब जाति, मज़हब, परिवारबाद ही पैमाने बना दिये जाएं, तो फिर विकास और जन-कल्याण की अपेक्षायें करना या तो मुंगेरी लाल के हसीन सपनें देखने जैसा होता है या फिर सोची-समझी रणनीति के तहत दिखाबा (Posturing) करना होता है।
     आजकल समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख माननीय श्री मुलायम सिंह यादव उ० प्र० में अपने ही पुत्र अखिलेश यादव की सरकार पर आये-दिन तंज कसते दिखायी देते हैं, नाक़ामयाबियाँ गिनाते रहते हैं, विकास का ककहरा सिखाते दिखायी देते हैं। लोकसभा के 2014 के चुनाव-परिणामों के बाद दबी ज़ुबान से ही सही, लेकिन बहुधा "मोदी अलर्ट" भी जारी करते रहते हैं। आगामी 2017 के उ० प्र० विधान-सभा चुनाव परिणामों की हक़ीक़त की आहट उन्हें डराती रहती है।
     मान्यवर, जब 'परिवारबाद', 'जातिवाद' और 'संप्रदायबाद' के पैमानों पर "ओहदे" सजाये जाते हों, तब भ्रष्टाचारी, ग़रीबी, गुंडागर्दी के ही फल आम-जनता को मज़बूरन खाने पड़ते हैं। यथार्थ में यदि सकारात्मक 'फल' की चाहत होती, तो 'कर्म' भी उसी के अनुकूल किया गया होता।
फिर...... 
*उ० प्र० पुलिस में भर्ती और तैनाती जाति को देखकर नहीं होतीं;
*मंत्री, सांसद, विधायक आदि परिवार, जाति और मज़हब के आधार पर तय नहीं होते;
*गुंडई को सुविधानुसार फलने-फूलने न दिया जाता और उस पर कभी-कभार की होने वाली कार्यवाही भी जाति  और धर्म देखकर नहीं होती;
*लोहिया जी के 'समाजबाद' को फिर हक़ीक़त में संजीदगी से जिया जाता, आये-दिन उसका जनाज़ा न निकाला जाता, आदि-आदि।